Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 332
________________ जम्बूस्वामी रास रदन करि दुख आणि घणउ, पुत्र प्रसंसि माता सुणउ | बार बार स्वरगि सुख भोग भोग लही लहि वियोग ।। २४ ।। ३८५ ।। तुहि नृपति न पाम्युं सार दुख सह्य एणि संसार | हिasi दिक्षा ले बन रही, पंच महाव्रत पालु सही ||२५|| २८६ ।। पूरव भव मातानि कह्मा पुत्र थकी माताइ लह्या । सुणु हो पुत्र सुखी हउ जेम, इस आदेश दीउ बली तेम ||२६||३८७ ।। दूहा - तिणि अवसर तिणे श्रेष्ठी ए, मोकल्या पुरुष ज बेह । कन्या विरजाई कह, कुमर लेइ तप देव ॥१॥३८॥ तिर्ण जाई तिहूं नि कहुं, पूरव महू वृतति । r बज्रपात तिहूनि उ बात सुणी बली कत || २ ||३६|| अन्य मन माहि चितवि, अन्य हूइ तिणि वार | t शुभ शुभ जीव भोगवि, कर्म तणि अनुसार ।।३।।२०।। दूत वचन जब सांभली. बोली कन्या सार । ताहरी मागी कन्या का कुण परणिए नारि ॥२४॥ ३६१५ जाति शुध जे स्त्री हुइ, ते नवि बांद्धि अन्य | एक बाप एकह गुरु, एक एक कुल धन्य ।।५।। ३१२ ।। एणि जन्म एह् बर ए सुनियउ मन सुं ग्रन्यह तात समान । करी. मूकि नहीं ते मान || ६ || ३६३|| एक रात्रि एक दिवस परणी नि वली एह । श्रमसमीप जू रहितु नवि छांडि गेहूं ||७|| ३६४।। ३२६ वचन सुणी कन्या तणां, कन्यानो वलि तात । अदास घिर श्रावीया, कुमर प्रति कहि बात ||८|| ३६५३

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