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कविवर त्रिभुवनकोति
कुमरि खग उलखावीयारे, रतनचूलि परी प्रादि । अंणिक राम प्रसंसीमारे, तिहुं प्रति बोली साद | |३५३॥ मृगांक सूता तिहां परफी उरे, श्रेणिक राय सुजाण । सहइ खग चलावीयारे निज निज मंदिर प्राण ॥कुरल।।५।। ३५४॥
तिहां थी थेणिक चालीउरे, प्राब्यु विध्याचल ताम। विलासवतीनि देखाल तुरे, विविध कुगति तिणि आम ।।
_ विध्या चल सहू भावीया ।।६।।३५५।। विध्याचल वर्णन
हरण रोझ गम सांवरा रे, मृग मयूरनि सेह । कपि महर्षि सिंघ अति भला, देवालतु स्त्रीयनि तेह् ।।कुरल।।७।।३५।। तिहां थी श्रेणिक पालीचरे, साथि जम्बू कुमार । सैन्य सबै साथि प्रछिरे, देस्यु सौधर्माचार्म ॥कुराला||५७।।
मगर उद्यान सह मावीयारे, भेटउ सौधर्मा स्वाम । हरष हूउ हैयदि घमारे, प्रणमि मुनिवर पाय ।।६।३५८॥ तप जप ध्यानि मागलु रे, पंचसि शिष्य समेत । ज्ञानवंत मुनिवर अछिरे, तत्व तणन आणि हेतु ||१ नगर।३५६।। सौधर्म मुनिवर वांदीयारे, विठ श्रेणिक राय ।
धर्म वृघि मुनिवर कही रे, प्रमि जंबू पाय ॥११॥नगर।।३६०।। वस्तु-तिणि अवसर तिणि अवसर जम्बकुमार ।।
प्रणमी मुनिवर चरण युग, बिठज ते वली प्रावि भाग । कुमरि मुनिवर पूछीया. स्वकीय भव लही लाग । सांभलिबह तुझ हं कई, स्नेह तणी बली बात ।
एक चित्त मनधरबी, पूरब भव सहू क्षति ।।१॥३६१।। पूर्व भव वर्णन चुपई-मगध देश देशा माहि मार, वर्तमान पुर उत्तम ठाम ।
भवदस भववेव वाइब कही, समकित पामी दिक्षा लही ।।१।।३६२।।