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जम्बस्वामी रास
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काम रूप देनी भलु विस्मय प्रामी नार । घन अननी घन ए पिता, जे घिर एन कुमार ।।१३।।३४।।
जस महिमा निज प्रापणउ, सांभल तु गुणग्राम । मृगांक सभा माहि प्रावीउ, विठल ते निज ठाम ॥१४॥३४३।।
कुमर कहि रत्नचूलनि, सांभल' तू' महाराय । तू राजा मोटु अछि, सेवि तुझ खगराय ॥१५॥३४४।।
भीठे वचन संतोषिनि, कुमरि मुक्यउ तेह । नगर पधारू श्रापणि, काज करू निज गेह ।।१६॥३४५।।
एसा वचन जब सोभली, रत्न चूल कहि वास । श्रेणिक राजा नोयना, भावुतम संधात ।।१७।। ३४६ ।।
केतला दिन तिहां रही, विमान रची तिणि वार । पंचसि रच्यां भला, दीसंता मनोहारा ।।१८।।३४७ ।।
रतनचूल तब चालीउ, मृगांक कुमर बली साथ । गगनगति वली स्याउ, कन्या छिन्त्रली साथ ।। १६॥३४८ ।
कुराल गिरि सह ग्रानीया, श्रेणिक छि जहा राय । हरष धरी हीयद्धि घणु, प्रणमि थेणिक पाय ॥२०॥३४६॥
हाल भवदेवनी राग धन्यासी
पाकास विमान मकी करी, हेग प्राग्य सह ताम । जम्बू कुपर राय तिहां निल्यारे, मिलि मुहू सेई नाम ।।१।।३५०।।
कुरल गिरि सह प्रायोया, भेटत श्रेणिक राम । हरष घरी मन प्रापणि रे, प्रणाछि श्रेणिक पाय ।।२॥३५॥
फुसल कल्याण सहू पूछो उरे, पूछि संग्राम नी बात । पूर्व वृत्तांत कुमरि का रे, तिहूनी बोलि सविक्षात । ३।३५२।।