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जम्बूस्वामो रास
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सप जप संयम पामी कला, सतीय स्वरग हया भला । स्वणा तषां सुख भोगवी सार, मध्य लोक हज अवतार ||२||३६३11
भवदत्त चर जेह तु सुरेन्द्र, वनदंत घिर सागर चंद्र । भववत्त चर जे स्वरग मझार, महा पद्म घिर शिव कुमार ||३।।३६४।।
पराग्य बस घरी दिक्षा तेह, स्वरग छठि प्रवतरीया बेह। इंद्र प्रती या तिहां रहो, देव देवी सुख भोमवि सही ॥३६॥
सांभलिबछ पम्हारी बात, मगध देश संवाहन क्षात । सुप्रतिष्ठ सजाछि भलु, दान शील संयम गुग निलउ ।। ५१।३६६।।
तमा घिर राणी शोज़ माती बाणा! मामि गुणवती ! सागरचन्द्र वर जे सार, उस कूखि हुन अवतार ॥६॥३६७।।
नष मास पूरे हूउ सूत, सौधर्म नाभि दीउ तव पुत्र । दिन दिन दृद्धि विर रहउ, अनुक्रमि विद्या सवे ला, ।।७।।३६८।।
एक दिवस यिग्रुला वीर, प्राध्या जाण्या राठ धीर । जिन बांदी जिन पूजी पाय, बिठउ नरपति तिणे ठाय ।।६।।३६६ ।।
परम वली प्रामी वैराग, दीक्षा लेई की माग । तप जोगि गणधर पदलही, देशज मुनिबर संक्यु मही ।।६।।३७०।।
हूं वैरागि वासजसार, लीधी दिक्षा मि भवतार । पंचम मणघर हउ वली, विहार करम शरियन रली ।।१।।३७१।
प्रान्यु एणा नगरोद्यान, ध्यान रहूं मूकी वली मान IT मुझ देखी तुझ उपनु नेह, पूरव भव संस्कारज एह ॥११॥३७२।।
सांभलि वछ तुमारी बात, भवदेव ब्राह्मण विक्षात । सही पराग दीक्षा घरी जेह, तृतीम स्वरग टूउ वली तेह ।१२।।३७३।।