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________________ ३२८ कविवर त्रिभुवनकोति स्वरग तणां सारां सुख लही, शिव कुमार हूउ ते सही । तप जप इयान सूघउ तिणि धरी, अंत काल जिणि दीक्षा करी ।।१३।३७४। प्रणशण पालो स्वरग मझार, विद्युत्माली हउ भरतार । भ्यार देवी मुलही संयांग, तिहंसर सुवली सही भोग ।।१४।।३७५।। दस सागर ते जीवी प्राय. मंग अनोपम रूडी का म 1 तिहां थकी चवी सुरसार, प्रहंदास घिर जंबू कुमार ॥१५॥३७६।। स्वरग देवी च्यारि जे हत्ती, तिहां थकी चपी ते सती । जू जू जज नमहूउ तेह तणु, समुद्रदत्त प्रादि ते मुणु ।।१६।।३७७।। मब यौवन पूरी ते नारि, प्राज थकी दिन दशमी मार। चिहुनि परणी लही संयोग, तिहुं सरसउ तुलहे सवियोग ।।१७ १३0018 जे पूली ते तुझ कही बात. पूरव भव नणीय क्षात । वचन सुणी पाराग्य, शिर जवानहीं। लाग 1१1!३७६।। जंबुकुमार का वीक्षा के लिये निवेदन दिक्षा मागी मुनिवर पास, संसार तणी छोडी ग्रास । वचन सुणी मुनिवर कही बात, घिर जाई तम्हे पूछ तात ।।१६।।३८०।। माय बाप हुँया बहबार, स्वजन बंघउ एणि संसार । तु माता तु तातज कही, भव संसार उतारू सही ।।२०।।३८१॥ प्रथम संसार भर्मतां ब्रह्मो, पडना राक्षु स्वामी तम्हो । हैवहां काइन कस समाल, हु छु स्वामी तम्हारू बाल ।।२१।।३८२॥ माता पिता से प्राहा मांगना गुरु बचने घिर जई कुमार, माय तात मिल्यु तिणि वार । दुख करि माता तिहां रही, पुत्र प्रसंसि माता सही । २२।। ३६६|| मणउ माता अम्हारी दात, अहमे दिक्षा लेसु मणु तात । वचन सुणी मूळ गति हुई. नोखी वाय ते बिठी थई ।।२३।।१८४।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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