Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर त्रिभुवनकीति
एक दिवस वनपालक, पाठ्यु वनह मकार छह रनां फल देखीनः मन माहि करि विचार ||३२||
श्रोणिक द्वारा भ. महावीर की वंदना
समोसरण जिन बीरनु, आव्यु विपुलगिरि राय । हरष घरी मन आपण देव पंचाग पसाय ||३३||
सिंघासन श्री आनंद भेर देइ
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उतरी, ते दिश नमोज राय I करी, वोरनि वंदन जाय ||३४||
वस्तु - तिप्रिय २ राजा भाव तरी मनपाणि स्नान करी ।
वस्त्रांग पिहरी सामग्री सवि सज करी । निर्मल भाव मन माहि घरी ।
राग गुडी ढाल साहेलडोनी.
पट हस्ती नगरीनि चाल्यु सवि परिवार |
प्रष्ट प्रकार पूजा लेई करतु जय जय कार ||१|| ||३५||
वीर जिणेसर वांदवा जी, चाल्यु श्रेणिक भूप ।
भाव धरी मन आपणे जी, जाण तु तस्य स्वरूप |
हो स्वामीय गुरू बंदण जाई, वीर तप्पा गुण गाई रे साहेलडी || १ || ||२६|
गज बिसी राजा बालीउ जी, साथि सहू परिवार |
वाजित्र वाजि अति घणा जी, संख्या रहित अपार । हो स्वामी ||२|| ||३७||
मैगल माता प्रति घणा जी, राजवाहन चक्रड़ोस |
वाय वेग तुरंगमाजी, तेह् श्रधि बहू मूल ही स्वामी || जग||३||३८||
मस्तक छत्र सोह्रामणु जी, चमर ढलि बिट्ट पास ।
दान देव राजा अति घणुं जी. याचक पूरि आस हो स्वामी || जन ||४||३१||
मान घरंतु प्रति धणु जी, लागू जिनवर पास ।
त्रण प्रदक्षणा देईनिजी, पांदि मन उल्हास हो स्वामी || जग || ५ ॥ ४० ॥