Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 325
________________ ___ ३२२ कविवर त्रिभुवनकोत्ति गगनगति हम उवरि, तम' रोप आण। एसु जाणी युधह करि को नघि मूकि माण ॥१६।।३११।। छत्रीस पाउध ले नि तिही कार संग्राम । अवसर लही नाग पास, समृगांक बाध्यु ताम ॥१७॥३१२॥ बाट सहश्र खग जो पीनि, कुमर याव्यु मुइ लग । जुद्ध करता देखी करी, विस्मय पाम्यु खग ।।१८॥३१३।। वस्तु बंध तिणि अबसर तिणि अवसर विद्याधर सहू कोइ विस्मय प्राम्या प्रति घणउ, माहो माहि करिए बात । ए सामान्य नर नवि भछिए सीकरी तेली सर्व क्षात । जुद्ध करता देखी करी विस्मय पाम्प खग । पाठसहस खग जीपौनि, कुमर माध्यु भूइ लग ||१६||३१४॥ राग विराडी दाल बमयंतिनी संग्राम भूमिज देस्त्रीय पैरवीय रोद्र रूप इम चितवर । निरापराध ए खेचरा भृचरा मारयामि इम चितविए ॥१॥३१५।। निरदय भाव ते मनधरी परहरी दयाभाव ते प्रति घणुए ।। ए बडङ कर्ममि कोइ करूं, कख्य भोगव जीवतु आपणउं ए । २।३१६।। पुरवि जीव पे करम करि करम इह लोकि जीव भोगदिए । इसु चित कोमल जप कर्यजं. तब आगिल प्रावी खग इम चविए ।।३।।३१७।। मांभलि कुमर तुझ कह तुझ विण आठ महल न ग कुण इणिए । दूत वचन मृगांक सुणी संग्राम कीधु, गगन गति इम भगिए ।।४।३१।। रतन सिखर प्रस्ताव लही, साहीय नाग पासि बांधीउ ए । इसा वचन जब सांभली क्रोधिय कुमरि बाणज सांचीउ ए ॥५।।३१६।।

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