Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कवितर विभुवनकीर्ति
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कर दी । इस विपत्ति में वह राजा श्रेणिक की महायना चाहता है। जब कुमार वहीं राज सभा में थे। उन्होंने विद्याधर के प्रस्ताव को स्वीकार करके राजा थेणिक की अनुमति मांगी । तया मैन्य दल के साथ दक्षिण की पोर चर पड़े। जबकुमार के विध्याचल पर आये और वहां की शोभा का अवलोकन किया--
सैन्य सहित तिहां प्राबीउ, विध्यांचल उत्तंग 1 जीव घणा तिहां देखीया, विस्मय पाम्यु मन चंग ।।३६॥
पिक केकी वाराहनि, हरण रोझ गौमाउ । हंस ध्यान गम सांबरा, मृग वष महिप न काय ।। ३७।।
मिल्ली भिल्लज देखीया, ते प्रायुघ महित अपार । सैन्य हाय देसी करी, नाठा ते तिणी वार ||३८
प्रागे चल कर उन्होंने जिन मदिरों की वन्दना की। अन्त में जवृकुमार मेना के साथ केरल पहुंचे । नगर में दूर ही उन्होने पडाव किया और प्रतिद्वन्दी लचूल विद्याधर को समझाने के लिये अपना दूत भेजा। दून ने राजा को विभिन्न प्रकार से समझाया लेकिन समझ नहीं सका । दोनों की सेना प्रों में घोर युद्ध हुमा। कवि ने रास काव्य में युद्ध का का वर्णन किया है 1 युद्ध में सभी तरह के बाणों का प्रयोग हुमा, हाथी, घोड, रथ एव पंदल सभी सेनायें एक दूसरे से खूब लड़ी।
तिहा क्रोध करीनि ऊठीया, मुकि बाण अपार । तिहाँ मेघ तणी धारा परि, बरमि तिणी वार । तिहां सिंध तणी परि गाजता, नेह लइ नहीं ठाम । तिहां छत्रीस प्रायुध ले नि, राइ करि संग्राम ।
अन्त में युद्ध में जम्बुकुमार की विजय हुई । चारों और उसकी जय जय होने लगी । नगर प्रवेश पर जात्रुकुमार का जोरदार स्वागत हुग्रा ।
राई नगर सणगारज. नगर कीट प्रबेस । नगर स्त्री जोइ धणु, करती नव नवा वेस । १२॥