Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर त्रिभुवनकोति
भट्टारक त्रिभुवनकीति जैन सन्त ये । त्याग उनके जीवन में उतरा हुआ था । इम प्रकार के सन्त जल में कमलयत रहते हैं । वे अपने भक्तों को पाप के कार्यों का त्याग करने एवं पुण्य के कार्यों को अपनाने के लिए कहा करते हैं। यद्यपि पाप एवं पुण्य दोनों हौ संसार का कारण है लेकिन पुष्ध से उत्तम गति उत्तम देह, ऐश्वर्य एवं मभ्यत्ति सभी तो मिलती है । इसलिए ऐसे कार्यों को करते रहना चाहिए जिससे सतत पुण्य का उपार्जन होता रहे। प्रस्तुत काव्य में कवि पुण्य की प्रशंसा भी इसीलिये निम्न शब् मैं करते हैं
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२६०
पुण्य धरि घोडा नीलास पुष्यि विर लक्ष्मी नु वास । पुष्यि थिरि रिषि प्रविसार, एस पुण्य तणु विस्तार ||२४||
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में
प्रस्तुत काव्य जवाछ नगर के शान्तिनाथ चैत्यालय में रचा गया था इसकी एक मात्र पांडुलिपि जयपुर के दिगम्बर जैन तेरह पंथी बड़ा मन्दिर के शास्त्र भंडार गुटका संख्या २५५ के पत्र संख्या १६१ से १६० तक संग्रहीत है। प्रस्तुत पांडुलिपि संवत् १६४४ फागुण शुक्ला अष्टमी की लिखी हुई है। लिपि स्थान बडवाल नगर का आदिनाथ जिनालय था। लिपिकर्त्ता थे ० सामल जो काष्ठा संघ में नन्दीतटगच्छ के विद्यागण के भट्टारक विश्वभूषण के शिष्य थे ।"
१. संवत् १६ ४४ वर्षे फागुण मासे शुक्ल पक्षे भ्रष्टम्यां शुक्रवासरे बडवाल नगरे श्रादिनाथ चैत्यालये श्रीमत्काष्ठासं नंदीतटगच्छे विद्यागणे भट्टारक विश्वभूषण तत् शिष्य ब्र० सामल लिख्यते ।
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