Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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कविवर त्रिभुवनकीति
. पन्त में माता-पिता, सास-श्वसुर सब से प्राज्ञा लेकर जम्मार सुधीस्वामी के चरणों में जा पहुँचा तथा उनसे दोभा देने की प्रार्थना की । जम्बूकुमार निन्य बन गये। उनके साथ विधु प्रम एवं उसके साथी, अहदास एव उपकी माता जिनमती, पद्मश्री मादि उसकी चारी पत्नियों ने भी जिन दीक्षा धारण करली ।
कुछ वर्षों के पश्चात् जम्बू उमी नगर में प्राये । मुनि जम्बूस्वामी के दर्शनार्थ हजारों नर नारी एकत्रित हो गये । सेठ जिनदास के यहां मुनिश्री का प्राहार हुश्रा । माहार के प्रभाव से रत्नों की वर्षा हुई। कुछ समय पश्चाद सुधर्मास्वामी को निर्वाण प्राप्ति हुई और उसी दिन जम्बूस्वामी को कंवल्य हो गया । इन्द ने गन्धकुटी की रचना की । जम्बूस्वामी ने सभी को सम्यग्दर्शन, सम्पज्ञान एवं सम्यकचारित्र की जीवन को उतारने, बारह व्रत, भोजन क्रिया, अष्टमूलगुण, दशधर्म, षट् आवश्यक कार्य प्रादि पर विस्तृत प्रकाश डाला। पर्याप्त विहार करने के पश्चात् जम्बूस्वामो एक दिन विपुलाचल पर्वत पर भाये सौर वहीं से निर्माण प्राप्त किया। इन्द्रादिक देवों ने जम्बूस्वामी का निर्वाण महोत्सव मानाया। जम्बूस्वामी के पिता प्रर्ह दास ने छटठा स्वर्ग प्राप्त किया। उनकी माता जिनमती स्त्री पर्याय को छोड कर ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में इन्द्र हुई । जम्बूस्वामी की चारों स्जियों में भी इसी प्रकार स्त्री पर्याय का विनाश कर स्वर्ग में जाकर देव हुई । विद्य च्चोर ने घोर तप कर सवार्थसिद्धि प्राप्ति की।
इस प्रकार कवि ने जम्बूस्वामी रास में जम्बूस्वामी का जिस व्यवस्थित पोली में जीवन चरित्र प्रस्तुत किया है, वह अत्यधिक प्रशंसनीय है । कवि का प्रस्तुत काव्य कथा प्रधान है। इसलिए इसमें कहीं-कहीं कथा भाग अधिक है तो कहीं-कहीं उसमें काव्य प्रधान अंश भी देखने को भी मिलता है।
मूल्यांकन
जम्बूस्वामी रास का रचना काल संवत् १६२५ है । उस समय तक बहुत से रास काव्य लिखे जा चुके थे । और रालो काव्य की दृष्टि से वह उसका स्वर्ण युग था । ब्रह्म जिनदास जैसे महाकवियों ने पचासों गम लिख कर रास शैली का निर्माण किया था । ब्रह्म जिनदास के पश्चात् भट्टारक ज्ञान भूषण, विद्याभूषण एवं रायमल्म ने जिस परम्परा को जन्म दिया था उसी पर त्रिमुयन कीनि ने अपने दोनों रास कात्रों की रचना की । इन रास कान्यों में कथा प्रवाह बराबर चलता रहता हैं । और उसी प्रवाह से कवि कभी कभी काव्यमय वर्णन भी प्रस्तुत करने में सफल होता है