Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
बाल ग्राम जीव बहु मरं पापी मनमें संक न करें । रूद्र ध्यान तीहां बहुत सुजान मारै तहां कीच रली घांन ॥१०७॥
प्रजि सिचाणां सिंघ तिहां फिरें, जीवत प्रांती नहीं उपरे । अंसो दीसे हंसा देस, भात पुत्र न भयो कलेस ॥ १०८ ॥
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दोहा - ब्रह्म
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राईमल्ल बंदिया, कह्यो सास्त्र
बोर कथा आगे भई तिह को
चौपई करे राजे विवेक सुजान, सुभ समकित मंत्री परधान । नीको मलो देई उपदेस, तिहये नार्स रोग कलेस
||२८५ ||
सम्यकित मंत्री प्रति बलवंत, जे वृझते होई निश्चत । athi सीख सु देई विचार, तिथें भोजल उतरे पार || २८६ ॥
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गुरू सार |
सुनो विचार || २८४ ॥
पट्टन तनो ग्यान कोटवाल, रण्पा करें वाल गोपाल । चार घवाउन को न संचर, पट्टन परजा लीला करं ||२७|
दुख सोक नवि जाणो कोई ग्यान तनों वल प्रति बिसतरं
दोहा - विवेकवि भांति सब पाप नगर व्योहार छं,
जैसी मुकति पुरी सभ होई दुर्जन दुष्टन लगतो फिरं ।। २६८ ।। कही, पुन नगर व्योहार ।। तिन को सुनो विचार ||२६||
मोह राव मन चितियो, मंत्री बैग बुलाई । राज हमारी दिठ भयो, कंटक गयो पुलाई ||२६||
कहै मोह मंत्री सुनो, मेरे मन ही कलेस I रात दीवति खटको हीये, भागो निवृत्य वाल ।।२९१।।
विवेक बेरी हम तनो, तिहको हम ने दुख । छांडि गयो सो सोचकरी, कदे न पाये सुख ||२२||
asो करि ईही छाडियो, दाब घाव सो बहु करें, पाछे
मन में बंर न पाई । तिह नै
पाई || २६३ ॥