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________________ १६० महाकवि ब्रह्म रायमल्ल बाल ग्राम जीव बहु मरं पापी मनमें संक न करें । रूद्र ध्यान तीहां बहुत सुजान मारै तहां कीच रली घांन ॥१०७॥ प्रजि सिचाणां सिंघ तिहां फिरें, जीवत प्रांती नहीं उपरे । अंसो दीसे हंसा देस, भात पुत्र न भयो कलेस ॥ १०८ ॥ X X X X दोहा - ब्रह्म — X X राईमल्ल बंदिया, कह्यो सास्त्र बोर कथा आगे भई तिह को चौपई करे राजे विवेक सुजान, सुभ समकित मंत्री परधान । नीको मलो देई उपदेस, तिहये नार्स रोग कलेस ||२८५ || सम्यकित मंत्री प्रति बलवंत, जे वृझते होई निश्चत । athi सीख सु देई विचार, तिथें भोजल उतरे पार || २८६ ॥ X गुरू सार | सुनो विचार || २८४ ॥ पट्टन तनो ग्यान कोटवाल, रण्पा करें वाल गोपाल । चार घवाउन को न संचर, पट्टन परजा लीला करं ||२७| दुख सोक नवि जाणो कोई ग्यान तनों वल प्रति बिसतरं दोहा - विवेकवि भांति सब पाप नगर व्योहार छं, जैसी मुकति पुरी सभ होई दुर्जन दुष्टन लगतो फिरं ।। २६८ ।। कही, पुन नगर व्योहार ।। तिन को सुनो विचार ||२६|| मोह राव मन चितियो, मंत्री बैग बुलाई । राज हमारी दिठ भयो, कंटक गयो पुलाई ||२६|| कहै मोह मंत्री सुनो, मेरे मन ही कलेस I रात दीवति खटको हीये, भागो निवृत्य वाल ।।२९१।। विवेक बेरी हम तनो, तिहको हम ने दुख । छांडि गयो सो सोचकरी, कदे न पाये सुख ||२२|| asो करि ईही छाडियो, दाब घाव सो बहु करें, पाछे मन में बंर न पाई । तिह नै पाई || २६३ ॥
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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