Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
हो तीया सहित राजा सिरीपाल, सुख में जातन जाणे काल । पर्व चारि पोसौ करे, हो जस बोल बंदी जन घणो । पिता नाउ कोइन ले, नाम लेह सब ससुरा तगी ॥७०।
हो सृण दुख पागै श्रीपाल, पिता नाम को भयौ प्रजान । माम ससुर के जाणिज्यो, हो धन कलस्यो नाही काम । पिता न्यास को ना सहै, हो नम उजेणी छोडो बास ॥७१॥
हो देखो विलख बदन सुन्दरी, भणे कंतस्थौ चिता भरी। स्वामि बात कही मन तणी, चिंता कवण बिलख मुख एहु । सहु सरीर दुर्बल भयो, हो कही बात जिम जाइ संदेहु ।।७२।।
है. मग पुनःनिगरि बाल, अष्टि चिंता वे दुर्बल गात । नग्र उजेणी थे चलों, हो रलदीप सुभ देखौं जाइ । द्रव्य प्राणिस्यो अति घणों, हो दान पुण्य स्लरची मन लाइ ।।७३11
हो मणासुदरि जंप कंत, तुम्ह धिणु इक क्षण रहै न चित्त । साथि लेइ हमने चलो, हो तक कोडीभई हसि उवरै ।। फल लागा राम ने, हो साथि सियान लियो फिरै ।।७४।।
हो मैणासुन्दरि जप कंत, स्वामी अवधि करौ परमाण । ते दिन हमस्यौ बीनज, हो भणं सुभट सुदरी सुजाणि । वरष बारह पाइयो, हो बचन हमारा निश्च जाणि ||७५३
हो सुदरि सोख देइ सुणि कंत, नाम राखि जे मनि अरहत । सत्य बचन परहंत का, हो गुरु बंदिज्यों महा निरगंथ । सिद्धचक्र व्रत सेविज्यों, हो संजम शील मालिज्यों पंच ॥७६।।
हो दुराचारि दासी कूढणी, मसवासी मिथ्या दृष्टिणी । बेस्या परकामिमि तजी, हो पुरुष परायो जो प्राचरं । सावधान रहिज्यौ सदा, हो भूलि विसास तासु मत कर ॥७॥