Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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२०८
महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
हो नवमी दीनि दस गुणौ विचार, जिण पूजा करि अधिक सुचार । मनोमि पहलै करी, हो दशमी दिनि सौ गुणों पसार । चंदन गंधोदक लया, दो देह सभट लावै प्रतिसार ॥५४॥
हो ग्यारसि दिनि सहस गुणी जाणि, जिणवर पूज पुण्य को खानि । अंदन अंग लगाइयो, ही दस सहम बारसि विस्तार । तेरसि लाख गुणी कही, हो पूजा कर रोग सह छार ।।५।।
हो पूजा लाख दस गुणी जाणा, घौदपि विनि पहल परमाणि । कोडि गुणी पुन्यो कही, पाठ दिवस वाजित्रा दान । नृषि कर बहु कामिनी हो, गावं जियगुण सरल साद ।।१६।।
कुष्ठ रोग का दूर होना
हो पाठ दिवस करि पूजा रली. गयो कोढ जिम अहि कंचुली । कामदेव काया भइ, हो अंगरक्ष राजा सिरीपाल । सिद्धचक्र पूजा करी, हो राग सोग नवि व्यापं काल ॥५७।।
हो देवशास्त्र गुरू करि वदना, सिरीपाल मुंदरि तक्षणा । साथि अंगरक्षक सातसं, हो करि पूजा माया निज थान । दुर्वल दुखीति पोषया, हो पात्र तिनि चहुं विधि दे दान ।।५।।
हो सुदरि बर राजा सिरोपाल, सुख मैं जासन जाणो काल । इंद्र जैम सुख मोग हो देव मास्त्र गुरू को प्रति भक्त । मत मिथ्यात न मरदहै, हो दुराचार विस्न सह तिस्त ।।५।।
हो सिद्धचक्र पूजा करि सार, द्वारापेषण दान प्रहार । पछं आप भोजन करे, हो पर कामिनी देख निज मात । सत्य वचन बोले सदा, हो सरस जीत को करे न धात ।। ६०॥
हो दब्य परायो लेइ न जाण, परिगह तणो कर परमाण । कर अणुव्रत भावना हो, गुणव्रत तीन्यौ पालै सार । माइक पोसौ करें, हो अतिथिभाग संझेखन चार ।।१।।