Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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२०६
महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
योग मेरी
बीनकर्मी ।
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पंडि गहि भूरल करें. हो छती वस्त कौ करे विजोग दूरि व पंदा करं, हो ए सहकर्म तथा संयोग ||३८||
हो कोढी उपण कोण सुबेस, कहां उजेरणी भयो प्रवेस । कर्म जोग हमने मिस्यो, हो कोठी सुंदरि भयो विवाह ! समु सिमल जुडी मिलं, हो तिम इहु भयो फर्म को भाउ | 113
हो दीयो डाइनो अधिक सुधार, घोडा हस्ती कमक प्रवार । वासी दास दीया घणा, हो छत्र पालिकी बहुत जडाउ । नगरी बाहरि घर दीया हो सोरीवाल सुंदरि छ |||४०||
हो अंगरक्ष जेता या साथ दान मान दे जोड्या हाथ । जाती सह संतोषीया हो भइ नफंगे नाव निलाण विदा करी सौरीपाल को हो ले भायो सुंदरि निज यान ||रास | ४१ ॥
हो सुंदर बात करूं परिधर, सिरोपाल की सेवा करं । मन डोल राने सदा हो देव गुरू की भक्ति करें | मत मिथ्यात राज्य सबै हो धर्म कुधमं परीक्षा लेइ ||रास | ४२ ||
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मैदा सुन्दरी द्वारा जिन पूजा करना
हो एक दिन पिय ने ले साथ गई जिणाले जगनाथ । देव शास्त्र गुरू बबिया, हो जिलवर चरणा पूज करंड आठ द्रश्य लीया मला, हो मन बच काया भाउ करे |रास | ४३ ॥
मुनिराज से कोढ दूर होने का उपाय पूछना
हो पाछे गुरु का पूज्या पाउ, हाथ जोडि गुरूस्थौ भणों, हो
को उदंबर उपन हो, करि उपगार जाड़ सह रोग । रास । ४४ ।।
मुनिराज का उत्तर
सिरीपाल ले बैठी भाइ । स्वामी कर्म कंन के जोग ।
पापणौ ।
हो मुनिवर भी सुंदरी सुखी जीव कर्म भुजे घावे जिसौ तीसौ लुगौ, हो जिनवर धर्म एक माधार । चहुं गति प्राणी बुडती हो, नाव समान उतारण पार ||रास | ४५ ।।