Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
काल संवर को बालक की प्राप्ति
हो तिहि मौसरि काल सजर प्रायो, हो खल्मौ विमान न चले चलायो । संक्षण धरली ऊतरौ जी, दीठी जी सीला बहु लेई ऊमासो। करस्यो उप हरी करी जी, हो माहे बालक कर विकासो ॥१॥
हो विद्याधर सो बालक लीयो, हो जिम निधि लांचा हरिष हीयो । सामोद्रिक गुण आगली जी, हो कंचण माला बुलाई राणी।। बालक लौ हु तुम्ह नै दोमो जी, ही राणी बाले निर्मल वाणी ।।७२।।
हो थार जो पुत्र पांच सारो, हो इहि बासक को कर प्रहारो। ते दुख जाईन में सह्या जी, हो सूणि बोलो संबर नरनाहीं । हम पाछै इह राजई जी, हो जाणी जी सही हमारी बोलो ।।७३।
हो कंचन माला बालक लीयो हो परि चालण को दिम कीयो। रचि बिमाण सोभा धणी जी, हो वंटा बुवर मोती माला। बालक ने ले चालीया जी. हो मेघकूट गढ़ अधिक रसानो ॥७४।।
हो राजा जो बालक मदिरि प्राण्यौ, हो बालक जन्म महोछो काप्यो । दीन दुखी यो देक्षा घणा जी, हा राजा जी मन में कर विचारो। कामदेव औतार छ जी, हो नाम दीयो परदमन कुमारी ७५॥
हा इह तो कथा इहां हो जामो, हो नम्र द्वारिका बात वस्त्राणो । जे दुख पाया रूपिणी जी, हो बालक सेज्या धानि न दी । रूदन करै हरि कामिणी जी, हो घूर्ण सीस दुवं कर पीट ।१७६।।
हो राजा जी भीखम तणी कुमारी, हो हिइडौ सिर कूट प्रति भारी। दोस जी खरी इराक्षणी जी, हो सुगी बात किस्न के दिवाणि । मुख तंबोल हरि रालीयोजी. हो हाहाकार भयो असमाने ।।७।।
हो हरि जी बान विचौर जोई, तीन खंड में बनी न कोई। पुत्र हमारी जो हर जी, हो हरि रूपाणि के मन्दिर प्रायो । सांत वचन प्रतिबोध दे जी, हो ठाई ठाई लिखि लेख पठायो ७८॥