Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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परमहंस चौपई तुम सोधै राजा मोकल्या, विदा लेई तिहां थे घल्या । सोध्या देस नगर गढ ग्राम, बहुत कष्ट पायो तुम धाम ।। ३१८।।
सेवक जिह को स्नाई गरास, सोधो कर रहे तिह पास । राजा विदा जिहां न करें, तिहां गया सेवक ने सरं ।।३१६।।
सुणि विबेक सोम मन राव, मोह दुष्ट को जाने भाव । कूड कपट तंषिन बंधिया, वंदीषानं तिहान दीया 1॥३२०॥
बहुत ग्यानन दीन्हों मान, अधिक बड़ाई बहु दे दान । सभा लोग सहु कीर्ति कर, ग्मांन इत्ती चोर न संघरं ॥३२१।।
भी पुन्य नगर में रयो, पाखंडी पाप नगर पाईयो । मोह राव ने कीयो, जुहार, पुन्य नगर भास्यों व्योहार ।३२२।।
सुणी राजा बीनती हम तणी, विकट नगर अति सोम घणी । नहीं लगाव तहां हम तणो, पुन्य नगर फिरि दौठो घणो ।।३२३।।
कोटवाल ग्यांन तिहां रहे, वात पराये मनकी लहै । कूड कपट बांध तषिणा. तिहरे दुख देखे घणां 11३२४॥
हम तो भाजपाईया ईहां, उभै सुभट तिहर हो रहा । मोह भने पाखंड कुमार, तुज सदा को भाजन हार ।।३२५।।
हुंभी फने छ बहुत उपाईं, समाचार सह कहमी आई । तो लग केतईक दिन गया, पापी नगर डम आइया ।। ३२६।।
मोह राव न कीयो जुहार, कहो पाछेलो सह व्योहार । स्वामि हम तिहां मोकल्या, तिह विवेक के सोधे चल्या ।।३२७।।
देस घनां वश्या निरत्ताई, पंथी यक मिल्यो तब भाई । समाचार व्योरो सह करो, पुन्मनगर विवेक जु तिहाँ रह्यो ।।३२८।।
जाई भेटयो देव जिनंद, देषि विवेक भयो प्रानन्द । दीन्हा वीडा वस्त निघान, पुन्य नगर दीनो शुभ ध्यान ।।३२६ ।