Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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परमहंस चौपई
मान बांधि विवेक गुलाव, बहुस दीवस न खालू माम । सांभलि पुत्र मोह की धात, तिव ही बहुत उल्हास्यो गात ||३६६।।
मोह भने सुनि मदन कुमार, तेरो ठांम नहीं व्योहार । नींद भूष तिस जाई न सही, वय वालक तुम जुम तो नहीं ॥३६६॥
मदन कुमार पितासु कहै, मेरा बल को भेदन लई। बालक सप्प इसे सुफुरंत, तिह को खायो तषिन मरंत ॥३६७॥
बालक रवि तिहां उदो कराई, अधकार सह जाई पुलाई । ग्रण्टापर को होई जवाल, ते जानज्यो सिंघ को काल ॥३६॥
सांभलि बचन मोह मुख भयो, पुत्र हाय कर वोडी दयो । मदन' बचन तेरा परमान, सेन्या ले चालो असमान ।। ३६६॥
कटक एक ठोकरि तषिना, अजस दमामा वाजं घनां । मोह पिता का बंधा पाई, मदन विवेक जीतबा जाई ।।३७१।
x x x x x x x x अंतिम पाठ
मूनसघ जुग तारन हार, सरव गछ गरको प्राचार । सकल कीति मुनिवर गुनवंत, तास मां ही गुन लहो न अंत ।।६४१॥
तिह को अमन नाव अति नंग रतनकीरत मुनि गुणा अभंग । अनन्तकीति तास सिष्य जान, बोले मुख थे अमृत वान 11६४२।।
तास सिष्य जिन चरणालीन, ब्रह्म राइमल बुधि को हीन । भाय भेद तिहां थोडौ लाहो, परमहंस की चौपई कयौ ।.६४३।।
अषिको वोछो भान्यो भाव, तिह को पंडित करो पसाब । सदी हुई सन्यासा मणं, भव भव धर्म जिनेसुर सणं ॥६४४॥
सोलासै यत्तीस वर्षान, जेष्ट सांवली तेरसजांन । सोम वार सनीसर बार, ग्रह नक्षत्र योग सुभसार ॥६४५।।