Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल बात सही हम पंथी कही. विवेक पुन्य नगर में सही 1 सुनत सुख उपनो अपार, पहुँतो तिहां विवेककुमार ||३३०॥ कोई दिन बन मांही रह्यो, पुन्यनगर मे छल कर लहो । लीन्हो ग्यान कोटवाल बुलाई. बुझि बात सबै निरताई ।।३३१॥ प्रणविर लोग जाणा तिहां बार, ले गयो तिहां विवेककुमार । कूड कपट तिहारो पिया, हम तो नगर माझ ही रह्या ।।१३२।।
भागो पाखंड पायो ईहा, हम तो भेद लीयो सहु तिहां । दोठा तिहाँ कोतुहल घणां, दाव घाव विवेक तां ।।३३३।।
बस्तुबंध
पुन्यपटन बस सुविसाल, टाइ ठाइ बहु पुन्य कोजे । देव पुज गुरू को बिनो, सामाइक पोसो करीजे ।
मन इन्दी तिहां निरोष कोजे, राजे छह विधि प्रोष । वाहिज भितर तप करें, सघ साघ ध्योहार सुणीजे ॥३३४।।
दोहा- श्रावक मुनि बहुचितवं महामंत्र नवकार ।
व्यंब पतिष्ठा जिन भवन, खरचे द्रव्य अपार ।।३३।।
श्रावक जात का बहु कहा, जेता बृत्त विधांन । अतिचार बिना कर, मन राख सुष ध्यान ॥३३६|
जिनवाणी प्रगट फर, कथा जे महापुरांन । सप्त तत्व नवपद कह्मा, सुनो भव्य दे कान ।।३३७।।
दिन प्रति पुन्य कर घणों, होई पाप को नास । परजा सर्व सुखी रहै, पुन्य नगर को बास ॥३३८।।
मिथ्या द्रष्टी पांच जे, सिंहां न सुणीजे नाम । घल दुहाई जिनतणी, देस नगर गढ ग्राम ॥३३६॥
थोडा विणज घणो नफो, प्रावक बहु संतोष । मन में सोई चित, जिहें थे पाजे मोल ॥३४।।