SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल बात सही हम पंथी कही. विवेक पुन्य नगर में सही 1 सुनत सुख उपनो अपार, पहुँतो तिहां विवेककुमार ||३३०॥ कोई दिन बन मांही रह्यो, पुन्यनगर मे छल कर लहो । लीन्हो ग्यान कोटवाल बुलाई. बुझि बात सबै निरताई ।।३३१॥ प्रणविर लोग जाणा तिहां बार, ले गयो तिहां विवेककुमार । कूड कपट तिहारो पिया, हम तो नगर माझ ही रह्या ।।१३२।। भागो पाखंड पायो ईहा, हम तो भेद लीयो सहु तिहां । दोठा तिहाँ कोतुहल घणां, दाव घाव विवेक तां ।।३३३।। बस्तुबंध पुन्यपटन बस सुविसाल, टाइ ठाइ बहु पुन्य कोजे । देव पुज गुरू को बिनो, सामाइक पोसो करीजे । मन इन्दी तिहां निरोष कोजे, राजे छह विधि प्रोष । वाहिज भितर तप करें, सघ साघ ध्योहार सुणीजे ॥३३४।। दोहा- श्रावक मुनि बहुचितवं महामंत्र नवकार । व्यंब पतिष्ठा जिन भवन, खरचे द्रव्य अपार ।।३३।। श्रावक जात का बहु कहा, जेता बृत्त विधांन । अतिचार बिना कर, मन राख सुष ध्यान ॥३३६| जिनवाणी प्रगट फर, कथा जे महापुरांन । सप्त तत्व नवपद कह्मा, सुनो भव्य दे कान ।।३३७।। दिन प्रति पुन्य कर घणों, होई पाप को नास । परजा सर्व सुखी रहै, पुन्य नगर को बास ॥३३८।। मिथ्या द्रष्टी पांच जे, सिंहां न सुणीजे नाम । घल दुहाई जिनतणी, देस नगर गढ ग्राम ॥३३६॥ थोडा विणज घणो नफो, प्रावक बहु संतोष । मन में सोई चित, जिहें थे पाजे मोल ॥३४।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy