Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भविष्यदत्त चौपाई
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गुर चरणा करि पूजा सार, चहु विधि संघ जोग आहार । जिथा जोगि वस्त्र सुभ दान, चोवा चंदन फोफल पान ॥२६२।।
उद्यापन की सकति न होइ, दूणौ त कर सह कोह। जैसी सकति तसो विस्तार, अषध' सास्त्रप्रभ पाहार ॥२६३।।
भाव मुघ अहि विधि व्रत कर, सो ना मुकति कामनी सुख लहै । पीड़ा दुख न व्यापं रोग, मिल पुत्र सहु जाइ विजोग ।।२६४।।
सुणी बात प्रजिका तणी, उपनी अंगि सोलार घणी । नमस्कार करि बारम्बार, कीयो व्रत को अंगीकार ॥२६५।।
फ्रा हान परित्र सार मरि जादा भीननी च्यारि ॥ दुखी पलिद्री देहु दान, व्रत पंचमी को बहु मान ।।२६६।।
मापिका को साथ लेकर मुनि के पास जाना
इहि विधि काल गमै सुदार, पुत्र तणी बहू' चिंता भणी ॥ एक दिन ले अखिका साथि, गइ जिणाल जाहा जगनाथ ।।२६७।।
जिणबर बिब बंद्या बहु भाइ, अजिका सहित मुनिवर में जाइ । करी बंदना मस्तकि हाथि, विनती एक सुणौ मुनिनाथ ।।२६८।। कमलश्री सुत दीपां गयो, तहिको बहुष्टि न सोधौ लहयो । पुत्र विजोग बहुत अकुलाह, रात्रि दिवस मन रहे न ठाइ ॥२६६।।
स्वामी तुम्है अवधि का जाण, बचन तुम्हारा महा प्रमाण ।
भवस दत्त छ कोणी थानि, हानि वृद्धि तसु करौ नखाण ।।२७०।। मुनि का वचन
मुनिवर भणे अवधि के भाइ, सुणी बात मन राखौ ठाइ । मदन दीप पहृतो कुसलात, पट तिलक महा विख्यात ||२७१।।
१. उखद ख प्रति । २. क ज प्रति श्री हीनि बुद्धि ।