Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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बस्तुबन्ध
महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
सुकर्म जोगि तहां बालक गयो, सुंदरि एक तह मेलो भयो । नगर सहित बहु संपत्ति लही, सत्य बचन तुम जाण सही || २७२ ॥
सुखस्य वारा बरस तहां रहे, वस्त पदारथ बहु विधि है । रुति' बसंत गास वैसाख, पांच दिवस उजालो पाख ॥ २७३ ॥
राति पाछिली विश्व जाणि, संपत्ति कार्मिणि बहुत सुजाण । कुसल प्रेम तुम मिलिसी श्राइ लोक तुम्हारा मन को जाइ ।1२७४ ॥
मुनिवर वचन सुण्या मन लाइ भयो हरष अति अंग न माइ । मुनिवर प्रजिका बंद्या बहु भाई, कमलश्री पहुंती निज दाइ ।। २७५॥
प्रीतम पुत्र विजोग प्रति, कमलश्री बहु दुख पाइयो । पूर्व कर्म कुमाइयो, पाछे सुंदरि उदे भइयो । बचन सुण्या मुनिवर तणां उपनो हरष अपार । भवदत्त जहि दीप थे, तहि को सुणी विचार ।। २७६।।
चौपई- कमलश्री दिन गिणती जाह, बरस मास वह रे मनलाई । या तो कथा हृयापुरि रहो, कहौ कथा जो तिलकपुर भई ॥ २७७॥
भविष्यानुरूपा का प्रश्न
एक दिन भोसाणह संत, बात पाछिली भासी कंत । पहली बात जके तुम कहो, ते सहु स्वामी वीसरि गई ।। २७८ ॥
कोण देस नम्र तुम तात, आया दहां कोण के साथि ।। विरांत कहे आपणी, जिम संसौ भाजं मन तो ।। २७६ ।।
भविष्यदत द्वारा मन में पश्चात्ताप करना
अवसदेत सुणि कामणि बात, पाय दुख पमीनों गात । पापी तसु कीयो विश्वास, माता की नवि पूरइ श्रस ||२०||
१. फ ग प्रति रति ।