Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
बस्त अनोपम स्याया सार, तिहि को स्वामी करौ विचार । दुर्जन सुणे होयो प्रति हङ्ग, सजन सुन सुकीरति भष्मे ।।३१४॥
भविष्यदस का उत्सर
मवसदंरत सुणि भाई बात, इसि बोल्यो सुणि हो तु म्रात । शुभ पर असुभ उपायों होड, तिहि का फल नर मुजै. सोइ ।।३१५।।
कर्म बिना नबि कोय सार, कर्म विना नदि लहै लगार । जातो कर्म उद होय प्राइ, तसो ताहा बधि ले जाय ।। ३१६॥
हम पूर्व सुक्रत संग्रह्यो, मली बस्त को मेलो भयो । सुख दुख दाता को नवि जान, दीस सह कर्म विनाण |॥३१७।।
दु सुख दता को नहीं पा को नः सही। घटुंगति मध्य जीव संचरै, पाप पुन्य ते साथि हि फिर ॥३१॥
लाधो बस्स न करीजे हरष, गई बस्न को न करी दुग्न । बहु वात मध्यस्थु जु रहे, तिहि को सुजस इन्द्र वर्णवै ॥३१६,
कामणि जोगै दुचो दीयो, बंधुदत्त ने भोजन कीयो । बाण्या सहित करी ज्योणार, पान सुपारी बस्त्र अपार ॥३२०॥
सब दलिद्र तमु राल्फी चूरि, प्रोहण वसत्र दिया भरपूरि । भवसदत्त मनि नही गुमान, बंधुवसन दीनो मान ॥३२॥
बस्तुबंध
भली दीठो तिलकपुर थान, भवसदत्त बहु भोग कीन्हा । चन्द्रप्रभ जिन पूजा कीनी, तिया द्रव्य सहु साथि लीनी ।। सागर तटि तहि थिति करं, भाइ मिलियो माह । प्रबर कथा प्रागं भर, सबै सुणौँ मन लाइ ।।३२२ ।।
चौपई- भवसदत्त बोल्यो सुणि भ्रात, भली भई प्रायां कुसलात ।
बचन कहीं तुम भाग भलौ, तीया सहित हमने ले चलो ॥३२३।।