SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ महाकवि ब्रह्म रायमल्ल बस्त अनोपम स्याया सार, तिहि को स्वामी करौ विचार । दुर्जन सुणे होयो प्रति हङ्ग, सजन सुन सुकीरति भष्मे ।।३१४॥ भविष्यदस का उत्सर मवसदंरत सुणि भाई बात, इसि बोल्यो सुणि हो तु म्रात । शुभ पर असुभ उपायों होड, तिहि का फल नर मुजै. सोइ ।।३१५।। कर्म बिना नबि कोय सार, कर्म विना नदि लहै लगार । जातो कर्म उद होय प्राइ, तसो ताहा बधि ले जाय ।। ३१६॥ हम पूर्व सुक्रत संग्रह्यो, मली बस्त को मेलो भयो । सुख दुख दाता को नवि जान, दीस सह कर्म विनाण |॥३१७।। दु सुख दता को नहीं पा को नः सही। घटुंगति मध्य जीव संचरै, पाप पुन्य ते साथि हि फिर ॥३१॥ लाधो बस्स न करीजे हरष, गई बस्न को न करी दुग्न । बहु वात मध्यस्थु जु रहे, तिहि को सुजस इन्द्र वर्णवै ॥३१६, कामणि जोगै दुचो दीयो, बंधुदत्त ने भोजन कीयो । बाण्या सहित करी ज्योणार, पान सुपारी बस्त्र अपार ॥३२०॥ सब दलिद्र तमु राल्फी चूरि, प्रोहण वसत्र दिया भरपूरि । भवसदत्त मनि नही गुमान, बंधुवसन दीनो मान ॥३२॥ बस्तुबंध भली दीठो तिलकपुर थान, भवसदत्त बहु भोग कीन्हा । चन्द्रप्रभ जिन पूजा कीनी, तिया द्रव्य सहु साथि लीनी ।। सागर तटि तहि थिति करं, भाइ मिलियो माह । प्रबर कथा प्रागं भर, सबै सुणौँ मन लाइ ।।३२२ ।। चौपई- भवसदत्त बोल्यो सुणि भ्रात, भली भई प्रायां कुसलात । बचन कहीं तुम भाग भलौ, तीया सहित हमने ले चलो ॥३२३।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy