Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भविष्यदत्त चौपई
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के हौं विधना कीना दुखी, पापी राकसि फाई न भखी । कार्मािण कंत बिछोहो कीयो, सो पाप मुझ उदै पाइयो ।।३४६।।
के भवगान्यो जिणवर देव, के मिथाती गुरु की सेव 1 के कुदान दीना बहु दाति, के में भोजन कीनौ राति ।।३४७।। पूर्व कंत परायो लीयो, तिहि मिषना मेरी छोनियो । मात्रा पुत्र विछोहो कोइ, विषना सजा लगाई मोहि ।।३४८।। सह पामरण दीन्हा रालि, तो तंवोल पान सह फालि ।
कहै कंत को सोधो कोइ, वस्त्र कनक सह मुकतो होइ ॥३४६।। वन्मुक्त्त की नितज्जता
बंधुदत्त कुण छोडी लाज, जाणों नही फाज प्रकाज । पापी के मन रहे न ठाइ, भाषज के नखि बैठौ माह ।।३५०॥ जिम कूकर परकावं पूछ, भावज हाय लगावै मुंछ । हे कामिणि करि दया पसाव, राखी बोल हमारी भाउ ॥३५१।।
भविष्यान क्या का विरोध
सुणि बोली कुलवंती नारि, रे पापी कहि बात विधारि । बडा भास की कामिणी होइ, माता जसी गिणे सह कोई ।।३५२।। कर्म इसा न कर कुल दाल, भावज घर ड्रम चिंडालु । रे मूरख मन रात्री दाइ, पाप जपाइ नरक गति जाइ ||३५३॥ पापी मद को अधीमयो, मान नहीं भाउज को कमी। जिम पापी मूडो मन कर, सिम तिम पोत अघो संघरं ।।३५४।।
सतवंती को सील सुभाइ, बुई पोत वणिक बिललाइ । उछल पवन झकौल नीर, बूट वाण्या बस्त गहीर ||३५||
रिसि करि प्राण्या बोल बात, तुम पापी सह बोल्यो साथ । पाहि हाय दुरि ले की यो, बचन कहि बहु निझटियो ।।३५६।।