Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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परमहंस चौपई
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भाव नीत मारग व्योहार, खोटो खरो परीस्या करें। देव सास्त्र गुरू जान मरम, श्रावक यती तणो सहु धरम ||४||
सब जीवन कु दे उपदेस, जिह थे नास रोग कलेस । कह विवेक सु बात विचार, सुलह इछा सुख संसार ।।५।।
वस्तुबंध-परमहंस बंदु प्रथम, जिह सुमरण सह पाप नास ।
दंसन णाण गुननीलो. दिष्ट केवल प्ररथ भास ॥ हिर विघा ति कीयो. कर माया ससंग ।।
तिह से मन सुत उपनो. चंचल अधिक सुचंग ॥५१॥ दोहा- मन के दर सुत उपना, मोह विबेक सुजाण ।
मोह प्रजा कु पीडबै, विवेक भलो गुण जान ॥५२।। चौपई- मन राजा अब बेटो बहै, भाया जोग देखन सहै ।
च्यारु पुत्र चेतना तनां, छोड गया नीसय पाटणी ॥५३।।
जाणे सव कुटंब कुसंग, माया तणो उछाह सुचंग । मन बेटो दीठो बलवंत, मन मोह माया बिहसंत ॥५४॥
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सोक दुवै माया चेतना. मोसा मसका सोक्या तां । उपरा उपरी कर विरुध ... ............... - ॥५५|| बेटा पास गई चेतना, परमहंस छोडी त खिणा । कोई किसका छिदन कहै, पुत्र सहित सुत्री सो रहे ॥५६।।
माया मनसु कहै हसंत मुनो बान मेरी गुनवत । थारो पुत्र विवेक कुमार, करपी घर में यकोकार ।।५७।।
सीख हमारी करज्यो एक, वेगा बंदी षांन इह देश । टुसट भाब ईह दीस वो, मान्य) सही बचन तुम तना ।।५८।।
सुनी बात तव माता तणी, तब बहन संका उपनी । मन प्रपंच मांडियो अनेक, तीन वाघ्यो साधु विवेक |१५.६ ।। तब निवृल्य सु बह दुषभरी, परमहंम मुवीनती करी । सुसरा मेरो पुष छुड़ाई, दोष विना बंध्यो मनराई ।।६।।