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________________ परमहंस चौपई १८५ भाव नीत मारग व्योहार, खोटो खरो परीस्या करें। देव सास्त्र गुरू जान मरम, श्रावक यती तणो सहु धरम ||४|| सब जीवन कु दे उपदेस, जिह थे नास रोग कलेस । कह विवेक सु बात विचार, सुलह इछा सुख संसार ।।५।। वस्तुबंध-परमहंस बंदु प्रथम, जिह सुमरण सह पाप नास । दंसन णाण गुननीलो. दिष्ट केवल प्ररथ भास ॥ हिर विघा ति कीयो. कर माया ससंग ।। तिह से मन सुत उपनो. चंचल अधिक सुचंग ॥५१॥ दोहा- मन के दर सुत उपना, मोह विबेक सुजाण । मोह प्रजा कु पीडबै, विवेक भलो गुण जान ॥५२।। चौपई- मन राजा अब बेटो बहै, भाया जोग देखन सहै । च्यारु पुत्र चेतना तनां, छोड गया नीसय पाटणी ॥५३।। जाणे सव कुटंब कुसंग, माया तणो उछाह सुचंग । मन बेटो दीठो बलवंत, मन मोह माया बिहसंत ॥५४॥ .... ..... सोक दुवै माया चेतना. मोसा मसका सोक्या तां । उपरा उपरी कर विरुध ... ............... - ॥५५|| बेटा पास गई चेतना, परमहंस छोडी त खिणा । कोई किसका छिदन कहै, पुत्र सहित सुत्री सो रहे ॥५६।। माया मनसु कहै हसंत मुनो बान मेरी गुनवत । थारो पुत्र विवेक कुमार, करपी घर में यकोकार ।।५७।। सीख हमारी करज्यो एक, वेगा बंदी षांन इह देश । टुसट भाब ईह दीस वो, मान्य) सही बचन तुम तना ।।५८।। सुनी बात तव माता तणी, तब बहन संका उपनी । मन प्रपंच मांडियो अनेक, तीन वाघ्यो साधु विवेक |१५.६ ।। तब निवृल्य सु बह दुषभरी, परमहंम मुवीनती करी । सुसरा मेरो पुष छुड़ाई, दोष विना बंध्यो मनराई ।।६।।
SR No.090269
Book TitleMahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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