Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल रत्नदीप जा जे व्यापारि , द्रव्य बिहजे अधिक अपार । दान पुन्य कीजे इह लोइ , मुनिष जन्म तस सफलो होइ ।।६५।। पिता तणी लखमी भोग , तहि का दोष कहो को कई। लखमी पिता मात सम जाणि, सेवत लहै दुख की सानि ॥६६॥
भूजी पापणी बर्व दाम , तहि को सर सबहि काम । खरफ हरस परत सुख लेइ , मान बडाइ सह कोई देव ॥६७।।
उदिम बिना न लख्मी सार , तहि थे उद्दिम करै कुमार । लख्मी जहाँ सुद्ध ब्यौहार , लखमी जहाँ सत्य प्रापार ||६||
सति की लीखमी विदाई, तिहि भ २५ हैआई. लखमी सदा सश्य को दासि , राति दिवस तिस्ट तहि पासी ॥६॥
बात हमारी हियर्ड घरौ , रत्न दीप जोग गम करो। सुण्या वचन सहुं मंत्री तणा , मन में प्राधिरज पायो घणों ।।७०॥ भली बात तुम्ह कहा विचारि , टिम कर मिलि चारि । बंधूदंत मित्रीह करी बात , पाए घरी पिता माहा मात ।।७१। बंधूदत्त पिता पं गयो , नमस्कार करि सो बोलियो । बीनती सुणों हमारी बात , तुमस्यों कहा चित की बात ॥७२॥ झठ बोलि जे बिढ़नौ दाम , ते सह कर प्रजुगतो काम ।। मन मै हरिषे मुत गुवार , तहि को अपजस जानि संसार ।।७३।।
बणिक पुत्र मार्ड व्यापार , खेती करसग कर गंधार |७४|
बन्धुदत द्वारा विदेश यात्रा का प्रस्ताव
मेरा विणा करण को भाउ , रत्नदीप प्रोहण पडि जाउ । पाणी द्रव्य विगज करि घणौं , दान पुन्य सरची पापणौ ।।७।।
पूजी प्रोहण दीजे तास , बणिवर चाल हमारे साथि । बड़ो पुत्र होइ बिडवं दाम , मात पिता से जिण का नाम ।।६।।