Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text
________________
१५४
महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
दाम दिया घोवर ने घणा, खड़े करे प्रोहण आपणा । घीवर मन मै हरिष्यो भयो, वणिक बस्त प्रोहण में दियो ।।११०॥
बंद तक्षणा, सुभट चलाउलानी
घणा !
मगरधुज नाम पंच परमेष्टी लीया, समद मध्य प्रोहण चालिया ।।१११ ।।
कर्म जोगि बाजियों कुबाब, मोगर रालि रह्या सहि ठाम ! सुभ संजोग बहुत दिन गयो, दुष्ट सुभाइ पवन बाजियो ।। ११२ ।। लीयो मुदगर वेगि उचाइ, चाल्यो पोल पवन के भाइ । सबही के मन हरियो भयो, आगे मदनदीप देखियो ।। ११३ ।
मदन द्वीप में श्रागमन
षड लाकडी तहाँ उत्तम नीर, वृक्ष जाति फल गहर गंभीर | देख्यो थानक सोझा भली, सब ही मन की पुजं रत्नी ।। ११४ ।।
वणिकपुत्र सब ही उतरे, मार्ग पाणी वासण भरे । मीठा फल लीया भरि पूरि, पड लाकड़ी बहु लीया ठूर ।। ११५ ।।
भवसदंत फल लेवा गयो बंधुदंन्त पापी देखियो । बात विचारी माला तणी, मन मैं कुमति उपजी घणी ।। ११६ ।। लोग बुलाया बडहर तणा, बंधी धुजा बेग या | वणिक पुत्र तब बोल्या एव, भदसदत नै मात्रा देइ ।। ११७ ।।
बोल्यो पापी नेत्र चढाई, भबसवंत हमने न सुहाइ । पापी ने नवि लेस्था साथि, परतश सत्रु मारं साथि ।। ११८ ।।
भविष्यबस को वन में छोड़कर आगे बढ़ना
भवसदेत वन मै छाडियो, पापी सेठ पाँच प्रांसु भरें, जैसा काम
प्रोहण ने घालियो । नीच नवि करं ||११६ ।। भवसन्त फल ले प्राइमो देखउ पोत न दुख पाइयो । मन मै हीं सरेक करें कुमान, कहीं विधाता भूल्यो यान ॥ १२०॥ ॥