Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल कुरजंगल हथणपुर नाम , छाडिउ मात पिता को ठाम मा माणिभद्र को बध्यो वाह , इंद्र सुरगि मनो बहुत उछाहु ॥१७॥ निद्रा तजि कुमर जागियों, तक्षण भीत दिसौं चित गयो । मन में अचिरज पायो घणों , वोहप्तो लेख तुरत ही तणौ ॥१७॥ भवसदत्त नौ भयो गुभान , आयो कोण पुरुष इहि यान ! वाचे लेख बहुत निरताइ , तिम तिम मन को सांसो जाइ ।।१७।। अभिप्राय लेख को लियो , तक्षण सुदरि मन्दिर गयो । भूमि पंचमी चढउ कुमार, प्रार्म अड्यो देखियो द्वार ||१||
भविष्यानरूपा में भेंट
भासदत्त बोलियो सुजाण , खोलि कपाट रूपोसाण । जन माई र बगर , है । ची रीता ॥१७६।।
सुणी बास मानियो गुमान , प्रायो पुरिष कोण इहि थान । मन मैं चिता उपनी श्रणी , सब सरीर चाली कापिणी ।१०।।
वन देवी कहै तस जोग , पुषी छोडि होया की सोग । सुभ साता पाइ तुम भली , तो थे जगति कंत की मिली ॥१८॥
करि बचन सुणि देवी तणा , जुगल कपाट खोलि तंक्षिण | भवसदंत भितरि चालियो , साच बचन तहिस्यों ऊधारियो ॥१८२सा
सिंघासण दीन्हो सुभठाम . थामा अंसरि ठानी जाय । देखि रूप मन भयो विकास , सुर्य देव मुभ यायो पास ॥१५३।।
अथवा देव जोतिगो कोइ . अंसा रूप मनिक्ष नदि तोइ ।। को इहु बन देवता सुचंग , दीसे सोभा निर्मल अंग ॥१४॥
सकसप विकलप मन मैं हाइ , को इहु कामदेव छ कोई ।। भवसर्वत्त देखि सस रूप , सुर कन्या थे अधिक अनुप ।।१८।।