Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
बीडा करि शाम वशियर मध्य सारथ बाहु । न माझि पट है बाजियो, बंधुदत्त सागरगम की यो
जहि को मन चालण को होइ, लेह बसत्र पाल सहु कोई । सुणि बात मन हरियो भयो, वाण्या बहुत किराणा सीयो
भविष्यदत्त द्वारा माता के सामने विदेश यात्रा का प्रस्ताव भवसदंत सह ब्यौरा सुण्यो वेगा जाय मातास्यो भो । हमने दुवो दीजे मात चाल बंधुदत्त का साथि ॥ ६० ॥
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कोहड़ा
मोहि दीप देखण को भाउ, साथि पाल पंच सौ साहु । मनुषि जन्य संसारा याद, ताकी बस्तु देखिजे माई ||११||
कमलश्री के विचार
कहै बात सा मन में डरी।
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बंधुदंत तुम ऐको तात HERI
पुत्र वचन सुणि कमलश्री हिय पुत्र बिचारी बात
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दुष्ट भाउ तुम उपरि करें बंधुदंत संग मति फिर तुमने बंरी करि करि गिणं, यह तो बात पुत्र नवि वर्णं ॥३॥
बेरी विसहर सारिखो, तिहि नीडं मत जाई । बेरी मारे डावदे, बिसहर पे खाई ॥१६४॥
देरी बिसहर जब मैं प करें महंत | बिसहर मंत्र उत्तरं, बेरी तंतन
मंत ॥६५॥
बैरी बट पाडो बागुस्यो, नाहर ऐना होई न भापणा, निचे करें
डाइणि चाड । विगाड़ || १६ | ।
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चोपाई — कमलश्री साँझली बात भवसदेत बोल्यो सुणि मात । जे कोइस्यों करें उठाउ, तब ले बेरी धाले धाउ ||३७॥
सुध नीति मारग मोहरं तहि को दुरजन कार्यों करें। जो है साथि पचसं साहु मुठ सोच को करसी च्याउ ||६८ ||
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