Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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पिता का परामर्श
संभल सेठ पुत्र की बात. हरियो चित विकास्य गात ।
हो पुत्र तुम्ह कुल आधार, पारो कहिया की ब्यौहार ।।७७॥
भविष्यदत्त चौपई
सीत बात दुख वारि घणा
नरकति पंप करावरि को
बन्धुदत्त का उत्तर
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आगे सागर महा विषाद, हम तो बात बड़ी
मगरमछ भांति अगाध | सुनो, जाइ न बोडी पुन्य कोणी ॥७६॥ कष्ट कष्ट करिमेवं पार, बस्त न माणं लहे लगार 1 लेइ बस्त पार्छ बाहु, कम्मं जोग प्रोण स्रड भई ||८०||
तोम्यो रति का सुख विलास, बरि बंडा सुख मुजी तास । सीख हमारी हिमई घरी दान पुन्य धरि बेठा करो ||१||
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बंधुदंत हसि बोहयो बात, बोनती एक सुणी होतात । बाप तपी में लखमी सुगी लोगा मात बराबर गिणी ॥६२॥
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अब हम ऊपर करहु पसाउ धनपति सुषौ पुत्र को स्वाद
बन्धुवत्त की राजा से भेंट
बोरा डरिष हरे नागणी ।
तहि थे यारौ जुगतौ न हो ॥ ७८ ॥
तेरा वचन सही परमाण वणिक पुत्र जहाँ पंचर्स भयो,
रत्नदीप नं मेरो भाउ |
मन माहे पायो प्रह्लाद ||३||
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लेहु किराण बस्त निवान | बंधुदंत की साथे दिया || १४ ||
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राजा श्रा चाली बात बंधुदंत व्यापारा जात । राजा बोलं मन मै जोई, बणिवर पुत्र कुलाक्रम होय ||२५||
धनपति बंशुषस ले गयो राजा श्रामै ठाडो भयो । कोयो जुहार भेंट ले घरी, हाथ जोडिउ बनली करी ॥८६॥
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राजा जी हम भाग्या होइ, रत्नदीप चाले सह कोई | राजा मन में कीयो विचार कीया सेठ्ठि बंधुदत्त कुमार ||७||
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