Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भविष्यदत्त चौपई
प्रोहण दूरि जात देखिपा, कर उचौ करि हेला दिया। मनि पछितावा करी पुकार, हो फल लेबा गयो गंवार ।।१२१॥
भविष्यवत्त द्वारा पश्चाताप करना
मस्यौ माता कहै थी वात, इहि पापी को न करसी साथि । माता बचन अंग्यून्या सोई, तिहि का फल लागा मोहि ॥१२२।।
अथवा कर्म हमारा दोस, जीवडा मन में न करी रोस । जेसौ कर्म उपाचे कोइ, तैसों लाभ तिहीं नइ होइ ।।१२३॥
बन भभीत अधिक असराल, सुबर संबर रोझनि माल । चीता सिंघ दहाडा घणा, बांदर रीछ महिष माकणा ॥२४॥
हस्ती तुम तिर अमरा, वारन प्रयागर बाल । अजिगर सप्पं हरण संचर, भवसदंत तिहि वन मैं फिरै ।।१२।।
मुरछी प्राई भूमि गिरि पर्ड, चेत उसास्व वह तडफड । ऊंचा नीचा लेई उसास, सरणाद कोइ नबि तास ।।१२६।।
भाखत झांखत कर दुख घणी, दीठो थानक पाणी तणो । वृक्ष असोक सीला ठाम, भवसदंत लीयो विसराम ।।१२७।।
छोणि नीर दुनै करि लीये, हस्त पाइ मुख प्रखालियो । नाम पंच परमष्टो लीया, प्रतिष प्रभागि तनौं फल मेलिया ।।१२।।
पाच फल को कोयौ पाहार, जल प्राचमन लीयो कूमार । दिन गत गयो धाययो भाण. पथी सबद कर असयान ||१२६।।
बस्तुबन्ध
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भाई बन मैं छाडियो, भयसदत्त बढ दुग्व पाइयो । महा भरण डरावणी, पूर्व कर्म तसृ उदै प्राई ।। पंच परम गुर हीये धरि तिही लीयो जोग अभिनास । वृख तले निद्रा भर भयो भानु परगास ॥१३०।।