Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
भेटी माता रूदन बच करिउ , भवसदंत होयो गहि भरिउ । मात तणा आंसु पूछेइ । सीतल वचन संबोधन देइ ।।४४।।
माता मेरी जाणो बात . सुभ पर असुभ करम के साथि । कातर भूलि चित्त मति कर , पाप र पुन्य भोगया सरं ।।४५.।
वस्तुबन्ध
मंत क्रोध कीयो घणी, कमलश्री बहु सुस्त्र पायो । हसि हसि कर्म जु वंधिया, पूर्व पाप तसु उद मायो ।।
दुख सुख मनि मा घणी, चित्त कर अभिमान ।
पुत्र सहत सारह सुदरी, रहे पिता के पानि ।। धनदत्त सेठ
बस नन बाण्यो धनदत्त , दया दान प्रति कोमल चित्त । मत मिथ्यात सबै परिहर , जैन धर्म को निहचो कर ।।४।। तिमा मनोहर सील सुजाणि , गुण लावण्य रूप को खानि । सकति सहृति बहु विधि दे दान , देव सास्त्र गुरु राख्न मान ।।४७।। वणिक विणाणी भोग भोग , पुषी भई कमें संजोग । पुग्यौ चंद्र बण्यौ मुख सास , नणा सोभ कमल विकास ।।४।।
सजन लोग देखि सस रूप , सुर कन्या थे अधिक अनूप । जिणवर थांन महोछा कीयो , तहि को नाव सरूप दियो ॥४६॥
ज चंद्र जिम बधै मारि , देखि रूप तसु चित्त विचारि । वर व्योहार सुपुत्री भई , निस वासरि सहु निद्रा गई ॥५०॥
मंत्री धनपति को प्राइयो , वणिबर धनदलस्यो बोनयो । पुत्री तणी करी जाचना , मान बडा दीन्हा घणा ॥५१॥
स्वरूपा के साथ धनपति सेठ का विवाह
दुवै बराबरी कुल आचार , कगै बिबाहु न लावो वार । बात सुणी सह मंत्री तणी . घनपति जोगि दई सक्षणी ।।५।।