Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि की काव्य रचना के प्रमुख नगर!
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भट्टारकों एवं विद्वानों का केन्द्र होने के साथ ही यहाँ प्राचीन साहित्य का भारी संग्रह या । बड़े-बड़े शास्त्र भण्डार थे 1 तया उनमें प्राचीन ग्रन्थों को प्रतिलिपि करने के पूर्ण साधन थे। जयपुर के तेरहपन्थी मन्दिर (वड़ा), ठोलियों का मन्दिर, बधीचन्द जी का मन्दिर एवं गोधों के मन्दिर में जो शास्त्र भण्डार है वे सब पहिले सांगानेर के विभिन्न शास्त्र भण्डारों में थे। इसके अतिरिक्त यह नगर सुधारकों का भी केन्द्र था । दिगम्बर समाज के तेरहपस्थ का सबसे अधिक पोषण यही हश्रा तथा इसके मुख्य नेता अमरा भीसा ने जो हिन्दी के कवि जोधराज गोदीका के पिता थे । मस्तराम साह ने अपने ग्रन्थ मिथ्यात्व खण्डन पुस्तक में तेरहपन्थ एवं अमरचन्द के बारे में विस्तृत जानकारी दी है। जिसके अनुसार अपना भीमा को धन का अत्यधिक मुमान था तथा वह जिनवाणी का अविनय करता था इसलिए उसको वहाँ के श्रावको ने जिन मन्दिर से निकाल दिया इसके पश्चात् उसने तेरहपथ का प्रचार किया और अपना एक नया मन्दिर बनवा लिया ।
2.
युर निकटि बस एक पोर, सांगानेरि प्रादि त ठोर । सबे सुखी ता नगरी माहि. तिन में श्रावक सुवस साहि । बड़े-बड़े चैत्यालय जहा, ब्रह्मचार इक बस तहा। अमरचन्द ही ताको नाम, सोभित सकल गुननि का धाम । ताके विंगी मिली प्रावत पन्च, कथा सुनत तजि के परपन्च । तिनि मैं अमरा भौसा जाति, गोदीका यह व्योंक कहाति । धनको गरव अधिक तिन घरयो, जिरवाणा को भविनयकरयो। तब बालो श्रावकनि विचारि, जिन मन्दिर ते दया निकारि । जब उन कीन्हो क्रोध अनंत, कही चले हो नूनन पन्थ । तब वै अध्यातमी कितेक मिले, हादशा सर्व यकसे मिले । बनवो कछुयक लालच देवे, अपने मत में ग्राने छ छ । नयों देहरो ठान्यो और, पूजा पाठ रचे बर जो । सतरहे मेरु निडोसरै शाल, मत माधो प्रसं मध जाल । लोगनि मिति के मतो उपायो, तेरहपन्य नाम ठहरायो।