Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
भी यहां के नागरिकों ने कभी हिम्मत नहीं हारी और अपने साहस, सूझबूझ से संस्कृति एवं धार्मिक विकास में लगे रहे।
देहली में जन धर्म का प्रारम्भ से ही वर्चस्व रहा । जैनों की संख्या, साहित्यनिर्माण एवं धार्मिक तथा सांस्कृतिक समारोहों की दृष्टि से इसने देश का मार्गदर्शन किया है। राजपूत काल से भी अधिक सम्मान जैन श्रेष्ठियों का मुसलिम काल में रहा । अलाउद्दीन खिलजी के समय (१२६६-१३६६) में नगर सेठ पूर्णचन्द्र नामक श्रावक था । बादशाह की उस पर विशेष कृपा थी। सेठ पूर्णचन्द्र के प्राग्रह वश तत्कालीन दिगम्बर प्राचार्य माधवसेन देहली पाये शास्त्रार्थ में दो ब्राह्मण विद्वानों को हराया। फिरोजशाह तुगलक के समय देहली में भट्टारक गादी की स्थापना की गई। इसके बाद से देहली मट्टारकों का प्रमुख केन्द्र-स्थान बन गया । राजस्थान के विभिन्न जन-प्रय भण्डारों में १४वीं शताब्दी में देहली नगर में होने वाली पाण्डुलिपियों का संग्नह मिलता है। जयपुर, उदयपुर मादि नगरों के शास्त्र भण्डारों में १४ वीं एवं १५ श्रीं शताब्दी की जो पाण्डुलिपियां उपलब्ध होती हैं वे अधिकांश देहली में लिपिबद्ध की गई थी । अपनश के भी किताहीशी निहित को । प्रथों में ही हुई प्रशस्तियों के प्राधार पर देहली के जैनों में साहित्यिक प्रेम का पता लगता है । विबुध श्रीधर ने सबत् ११८६ को देहली में नट्टल साहू की प्रेरणा से पासणाटचरिउ की रचना की थी। उस समय यहां पर तोमरबंशीय शासक अनंगपाल का शासन था।
ब्रह्म रायमल्ल ने १६१३ में प्राचीन ग्रन्थों की प्रतिलिपि करके अपना साहित्यिक जीवन देहली में ही प्रारम्भ किया था। उस समय यहां भट्टारकों का चरमोत्कर्ष था। चारों पोर पामिका, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में उन्हीं का शासन चलता था । मुगल शासन में ही देहली में लाल मन्दिर का निर्माण हुआ जो जनों के महान् प्रभाव का द्योतक है। ब्रिटिश युग में भी जैनधमांवम्बियों ने शासन एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में अपना प्रभाव रखा । आज भी देहली का जैन समाज साहित्यिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक जागरूक माना जाता है।