Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
उत्तम कुर जंगल को देस । भली वस्स सह भारत असेस । पस्त मनोहर लहि जे धणी । पुजे सहा रलो मन तणी ॥६॥ तह मैं हस्तनागपुर थांन । सोभा जैसी सुर्ग बिमान ।। बाग बाबड़ी तहां मोभा धणी । वृक्ष जाति बन्न जाई न गिणी ॥१०॥ मुनिवर नाथ धरै तहां ध्यान । जाणे सोनों तिणो समान । परिगहि संग तजे बाईस । करह ध्यान प्रति महा जगीस ॥११॥ रिशिपंत मुनिवर प्रतिधणा। वृक्ष फले सहु छरिति सरणा ॥ कर घोर लप मम बच काय 1 उपजे केवल मुक्ति हो जाई ॥१२॥ खेती ध्यान अठरा होई । दुप्रदु काल न जाणो कोई ॥ सोभे भली साल पोखरी । बोस निर्मल पाणी भरी १३|| माडि कमलणो कर विकास । माणिक रवि किमो प्रगास । पंथि जग सस भूख पलाई । सीतल मीर यस फल साई ॥१४॥ नन माहि जिण थानक घणा । मरहे विष भला मिण तणा । प्रविधि पुजा श्रावक करै । गुर का बचन ही धरं ॥१५॥ वान यार तिह पात्रा देइ । पात्र मात्र परीक्षा लेइ । शिव प्रतिष्टा जात्रा सार । खरचं प्रख्य प्रापरसो अपार ।।१६।। ऊंचा मंदर पौल पगार । साप्त भूमि उपरि दिसतार । धरि धरि रली बधाबा होई । कानि पडि नषि मुणि जे कोई ॥१७।। राजा नाम राज कर भुपाल । जैसो स्वर्ग इंच भोवाल । पालै प्रजा वाले न्याई । पुग्यवंत धणा पुर रा ॥१| चोर बाडन राखे ठाम । गा सिंध पीये बक ठाम । नेम धरम्म गरज प्राचार । पुण्य पाप को करें विचार ||१६।। राणी पहपावती सुजाणि । गुण लार्वाण रूप की खानि । दुःखो दलित नै वेवं धान । देव सास्त्र गुर राख मान ॥२०।। बसे एक तहां धनिपति साहु । जैन धर्म नपरि बहु भाउ । पूजा रान कर मनलाई । प्राठे चौसि अन्न न खाई ॥२१॥