Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
के विवाह को उसके पिता को बहुत चिन्ता थी इसके लिये उसने अन जल और पान भी छोड़ दिये थे ।
चिन्ता अधिक भई सरीर, राज्या तंबोल न भरू मीर ।
राज कुंवार देवे सब तेहि, बात विचारन आ कोइ || ५४ । ७४ ।
कभी-कभी घर के चयन के लिये राजा लोग अपने मंत्रियों की सलाह लिया करते थे और उनमें से किसी एक बर के साथ राजकुमारी का विवाह कर दिया करते थे। अंजना के लिये पवनजय का चयन यादित्यपुर के राजा महेन्द्र द्वारा इसी प्रकार से किया गया था ।
भट्टाचारकों का प्रभुत्व
समाज पर भट्टारकों का पूर्ण प्रभाव था । उत्सव, विधान, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा समारोह, व्रतोद्यापन आदि के सम्पन्न कराने में उनका प्रमुख योगदान रहता । इन समारोहों में या तो वे स्वयं ही सम्माननीय श्राध्यात्मिक सन्त के रूप में सम्मिलित होते या फिर उन्हीं के नाम से समारोह का आयोजन रहता था। भट्टारकों के प्रतिरिक्त संघ की प्रमुख साधुओं में मंडलाचार्य, ब्रह्मचारी आदि के नाम प्रमुख हैं। ने सभी ग्रन्थों को प्रतिलिपि करने का काम भी करते थे । सवत् १६३० अषाढ़ सुदी २ सोमवार को ब्रह्म रायमल्ल को भट्टारक सकलकीति विरचित यशोधर चरित्र की पाण्डुलिपि भेंट की गयी थी। भेंटकर्ता थे ठाकुरसी एवं उनकी धर्मपत्नी लक्षण राजस्थान में भट्टारक चन्द्रकीति संवत् १६२२ से १६६२ तक भट्टारक रहे। ब्रह्म रायमल्ल धीर भट्टारक चन्द्रकीति समकालीन थे ।
लेकिन व्रत उपवास एवं प्रतिष्ठा विधान के अतिरिक्त समाज में आध्यात्मिक साहित्य की भी मांग होने लगी थी। राजस्थान में ढूंढाड प्रदेश और उसमें भी
सत्यंजय मंत्री हम कहे, उहि ने पुत्रो दीजं नहीं ।
राजा बात सुनो हम तथी वर उत्तम मो जोग्य भंजनी । श्रादितपुर सो सुभमाल, कहै राज प्रहलाद भांवाल | रानी केतुमती घर भलो, इन्द्र सरोसा जोडी मिली । पवनंजय तसु बढद्ध कुमार, धम्मंवंत गुप्य समुद्र पार 1 कांति दिवाकर सोभे देह, सोलह वरना चन्द्रमुख || २. प्रशस्ति संग्रह-सम्पादक डॉ० कासलीवाल,
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