Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि की काध्य रचना के प्रमुख नगर
कितने ही उतार चढ़ाव देखे । कभी उसफे तलवारों एवं तोपों की खुली चुनौती का सामना किया तो कमी उसने रक्षा के लिए हजारों लाखों वीरों को अपना खून बहाते देखा । हम्मीर राजा के साथ ही रणथम्भौर का भाग्य ने पलटा खाया और कभी यह मुसलिम बादशाहों की अधीन रहा तो कभी राजपूत मासकों ने उस पर अपनी पताका फहरायी । देहली के बादशाहों के लिए यह किला हमेशा ही सिरदर्द बना रहा । सम्राट अकबर इस पिले पर अधिकार किया तो वहाँ कुछ शान्ति रही मन्त में मुगल सम्राट शाह आलम ने इस किले को जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह को दे दिया ।
रणथम्भौर जैनधर्म एवं संस्कृति का केन्द्र रहा । युद्धों एवं मारकाट के मध्य भी वहाँ कभी-कभी सांस्कृतिक कार्य होते रहे । 11 वीं शताब्दि में शाकम्भरी के सम्राट पृथ्वीराज (प्रथम) ने अन मन्दिरों में स्वर्ण कलश चढ़ाया था । 'सिद्धसेन सूरि ने राजस्थान के जिन पवित्र स्थानों का उल्लेख किया है उनमें रणथम्भौर का नाम भी सम्मिलित है।
राजा हम्मीर के शासन काल में भतारक धर्मचन्द्र ने किले में विशाल प्रतिष्ठा समारोह का प्रायोजन किया था २ और मन्दिर में धोबीसी की स्थापना करवायी थी । उसके शासन में जैन धर्म का चारों ओर अच्छा प्रभाव स्थापित था। हम्मीर के पश्चात् रणथम्भौर मुसलिम शासकों के आक्रमण का शिकार बनता रहा। सक्त J608 में पं० जिनदास ने शेरपुर के शान्तिनाथ चैत्यालय में होलीरेणुका चरित्र की रचना की थी। जिनदास रणथम्भौर के निकट नवलक्षपुर का रहने वाला था। इस अन्य की प्रतिलिपि रणथम्भौर में ही साह करमा द्वारा करवायी गई थी और प्राचार्य ललितकीति को भेंट में दी गई थी । इसके एक वर्ष पश्चात् संवत् 1609 में श्रीधर
१. रणथंभपुरे प्राणालेहेणं जस्स सरियेग । हेम धप दस मिसन निच्च नच्चाविया कित्ती ।।३।।
—पदमदेव कृत सदगुरूपद्धति २. सवत् माघ दि ५ श्री मूलसंघे सरस्वती गच्छे भट्टारक श्री धर्मचन्द्र जी
साहमल पीलमल चांदवाड भार्या भरवत सहरगढ रणथंभार श्री राजा
हम्मीर । ३. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों को ग्रन्थ सूची चतुर्थ भाग, पृ० २१२,
पचायत मन्दिर भरतपुर ।