Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल ७. नाचते हुए भूत
नीच जाति के देवो में मात्र होंगे तथा
जैन धर्म का ह्रास होगा। +-६. सूखा हुआ सरोवर तथा दक्षिण जहां-जहां तीर्थकरों के कल्याणक हुए हैं दिशा की ओर जल
वहाँ वहां इने गिने जैनधर्मावलम्बी रहेंगे ।
जैन धर्म दक्षिण में रहेगा । १०, चमकते हुए कीट
भविष्य में जैन धर्म कम हो जायेगा तथा 'प्रशिक्षा नोर दिया धर्मों का से यन करते
रहेंगे। ११. सोने के बर्तन में दूध पीता हुअा। ऊंची जाति में लक्ष्मी नहीं होगी लेकिन कुत्ता ।
नीच जाति के लोग लक्ष्मी का उपभोग
करेंगे। १२. हाथी पर बैठा हुअा बन्दर नीच जाति के हाथ में शासन होगा तथा
क्षात्रिय उसकी सेवा करेंगे। १३. सीमा को लांघता हुअा समुद्र राजा न्याय का मार्ग छोड़ देगा तथा प्रजा
को सूटकर खायेगा। १४, रयों में बसों के स्थान पर धोड़े मुषा दीक्षा लेंगे तथा वृद्ध माया में फंसे
१५. चूल से ढकी हुई रस्नों की राशि पंचम काल में साधुत्रों में परस्पर में विरोध
रहेगा। १६. जूझते हुए काले हाथी पंचम काल मेदिन प्रतिदिन कष्ट बढेंगे तथा
समय पर वृष्टि नहीं होगी। स्वप्नों का फल जान कर सम्राट चन्द्रगुप्त को जगत से वैराम्म हो गया और चैत्र सुदी ११ को अपने पुत्र को राज्य भार सौंप कर मुनि दीक्षा धारण कर ली। रचना काल-कुति में न रचनाकाल दिया हमा है और न रचना का स्थान ।
केवल कवि ने अपने नाम का निम्न प्रकार उल्लेख किया है - जिण पुराण माहि इम सुणी, ताहि विधि ब्रह्म रायमल भणी ॥२५॥
कृति में २५ पद्य हैं उनकी यह प्रारम्भिक रचना लगती है। राजस्थानी शैली की इसमें प्रमुखता है ।
१. आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर, गुटका संख्या ४, पत्र संख्या ८४ से ८६
संवत् १७२४ लिखित पं० लिखमीदास ।