Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न
वांति कति सुख मित्र || जि०॥ लाडू इरि परि सोधियो ।। १३ ।। जिम पामउ निरवांण ।1जि०|| सांभरि नयार सुहामणो || १४ || भव्य महाजन लोग क्रिया भग्नो भावकतली ।।१५।। पालउ सब सुख होइ, ब्रह्म राहमल हम भरणउ ।।१६। धम्मं जिणेसर जिलेसर लाडू हो
सररण
।।१७।।
७३
उक्त रचना 'सांभर' में रची गयी थी। सांभर में कवि ने जेष्ठ जिनवर कथा को संवत् १६३० में निवद्ध की थी। इसलिये यह रचना भी उसी समय की मालूम देती है ।
१२. चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न
जैन पुराण साहित्य में स्वप्नों का अत्यधिक महत्व माना गया है। तीर्थकर के गर्भ में आने के पूर्व उनकी माता को सोलह स्वप्न आते हैं और इन स्वप्नों के धनुसार ही उसे तीर्थंकर पुत्र होने का भान होता है। भरत सम्राट के स्वप्नों का भी पुराणों में खूब वर्णन मिलता है । प्रस्तुत कृति में सम्राट चन्द्रगुप्त को आने वाले सोलह स्वप्नों का वर्णन किया है। चन्द्रगुप्त हमारे देश के सम्राट थे तथा जैन धर्मानुयायी थे। सम्राट को जब स्वप्न भाये तो उन्होंने अपने गुरु भद्रबाहु से उनका फल जानना चाहा । उस समय भद्रबाहु ने जो उनका संक्षिप्त फल बतलाया उसी का कविवर रायमन ने प्रस्तुत कृति में वर्णन किया है ।
१. टूटी हुई डाली
२. अस्त होता हुआ सूर्य
५. उगते हुए चन्द्रमा में अनेक छेव ४. बारह फरण बाला सर्प
५. देव विमान गिरता हुआ
६. कूडे में कमन उगता हुआ
क्षत्रिय जाति को दीक्षा में विश्वास नहीं रहेगा ।
द्वादशांगत का ह्रास होगा तथा उसे जानने वाले कम रह जायेंगे ।
जिन शासन अनेक भागों में बंट जावेगा । बारह वर्ष का दुष्काल पड़ेगा साधु भ्रपने प्राचार से विमुख होंगे ! भविष्य में चारण ऋद्धिधारी मुनि नहीं होंगे ।
संयम धर्म केवल वैश्य जाति में रहेगा । ब्राह्मण और क्षत्रिय भ्रष्ट हो जायेंगे ।