Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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शृङ्गार परक वर्णन
८९
माघ मारा
पोष मास - पोष मास में तीथंकरों के कल्याणक होने के कारण नर नारी
पूजा करते हैं । मोतियों से चौक पूरा जाता है । स्त्रियां अयना गार करके भक्ति-भाव से जिनेन्द्र की भक्ति करती हैं । लेकिन मुझे तो विधाता ने दुःख ही दिया है ।। माघ पाराबाल पड़ता है। इस कारण वृक्ष और पौधे बर्फ से जल जाते हैं तथा नष्ट हो जाते हैं । हे स्वामिन प्रापने तो मेरी चिन्ता किये बिना ही साधु-दीक्षा धारण
कर ली । हे स्वामिन् ! प्रब मुझ पर भी दया करो ।' फाल्गुन मास-फाल्गुण मास में पिछलो सर्दी पड़ती है। बिना नेमि के यह
पापी जीव निकलता ही नहीं है, क्योंकि दोनों में इतना प्रधिक मोह हो गया है। तीनों लोकों का सारभूत अष्टालिका पर्व भी इसी मास में प्राता है , जब देवतागण
नंदीश्वर द्वीप जाते हैं । फागुरिंण पई हो पछेसा सोउ, नेमि विणा नीकसी पापी पा जोय । मोह हमारा तुम्ह सज्यो, अहो बस अष्टाहिका त्रिभुवन सार । दीप भविश्वर सुर करो, स्वामि हमस्यो जो प्रैसी करि हो कुमारी ॥१२॥ पैत्र मास - जब यंत्र के महीने में बसन्त ऋतु पाती है तो वृक्षा
स्त्री भी यूवती बन कर गीत गाने लगती है । बन में सभी पक्षी क्रीड़ा करते रहते हैं, क्योंकि उन्हें चारों और सब फूल खिले हुए दिखते हैं। कोयल मधुर शब्द सुनाती रहती है इस प्रकार चैत्र मास पूरा मस्ती का महीना है । ऐसे महीने में राजुल बिना नेमि के कैसे रह सकेगी।
1. अहो पोस मै पोस कल्याणक होई, पूजा जी नारि रचं सह कोई ।
पूरै जी चोक मोरयां तणा, अहो कर जी सिंगार गाव नरनारि । भावना भगति जिनबर तणो, प्रहो हमको जी दुःख दीन्ही करतारि ।। अहो माघ मांस घणा पड़ जी तुसार, बनसपती दाझि सर्व हुई छार । चित्त हमारो घिर किम रहै, ग्रहो तुम्ह तो जी जोग दिन्हो बन आइ । मेरी चिन्ता जी परहरी, स्वामि दया हो की अब जादौ जी राई ।६१॥ अहो चंत पावे जब मास बसंत, बुढी हो तरणी भी गावे हो गीत । छन में जी पंख क्रीडा करे, अहो दीसे जी सब फुली वणगइ। करी हो सबद अति कोकिला, अहो तुम्ह बिना किम रहे जादो जी राय ॥१३॥