Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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प्रकृति वर्णन
अत्यधिक डरावना था कवि ने उसका सुन्दर वर्णन किया है। कुछ पंक्तियां निम्न प्रकार हैं-
वन अति अधिक महा भैभोत, सावज सिंध व परीत।
चीता रोड स्थाल शुकरी, ता वम मैं पहुंली सुन्दरी ॥१४॥ ६०॥
-हनुमत कथा
कवि ने लगा में सीता के चारों ओर जो सुरम्य उद्यान था उसका वर्णन भी
विभिन वृक्षों एवं फल-फूलों के नाम देकर किया है
नंदनवन देवरे व्योषाद, फुलित फुलिति भई वनराष्ट्र । कवली चोंच भांव नारिंग, दाल छहारी मामतु लिंग । कमरख कटहल कंस अनार, लोंग बिदाम सुपारी चार |१५|
कुआँ मरवौ जूही जाद, केतकी महुवो महकाइ पाडल बकुल बेलि सेवतो, वन सोभा दीसे बहु भंती |१६|
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वन में केवल वनस्पत्ति ही नहीं होती यहां वन जीव भी होते हैं | महाकवि
ने भविष्यदत्त चौपई में इसी का एक वर्णन निम्न प्रकार किया है
वन मै भीत अधिक प्रसराल, सुवर संवर रोझनिमाल ।
चीता सिंघ बाडा घणा, बाँदर रौद्र महिष साकरणा । १२४१
हस्ती जब फिर प्रसराल, सारबूल अष्टापद बाल । अजगर सयं हरण संचरं भवसवंत तिहि वन में फिरं । १२५ ।
॥
तिने बन में जाकर जिनेन्द्र भगवान की पूजा एवं वंदना की । कवि ने उस पूजा के लिए जो भ्रष्ट मंगल द्रव्यों के नाम गिनाये हैं उनमें प्राकृतिक वर्मन में बहुत माम्यता है ।
इस प्रकार और भी महा रायमल्ल के काव्यों में प्राकृतिक वर्णन हुआ है। जिससे कामों में स्वाभाविकता एवं सुन्दरता प्रायी है ।
१. घणी कहो ती होइ विस्तार, जाति लाख दश वनस्पति सार |