Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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सुदर्शन रास
पूरे रास में १६५ पच हैं जिसका कवि ने रास के अन्त में उल्लेख किया है ।
५ सुदर्शन रास प्रस्तुत कृति ब्रह्म रायमल्ल की एक महत्वपूर्ण कृति है। इसमें अपनी सच्चरित्रता में प्रसिद्ध से सुदर्शन का जीवन वृत निबद्ध है। यह एक रास काम है और इसकी भी वर्णन शैली वही है जो कवि ने अन्य काव्यों में अपनायी है। सर्व प्रथम गम का चौबीस तीर्थारों की को किया गया है जो ५५ पद्यों में समाप्त होता है।
रास की कथा जम्बूद्वीप से प्रारम्भ होती है। भरतक्षेत्र में प्रग देश है उसकी राजधानी चंपा नगरी है। उसके राजा पालीवाहन तथा रानी का नाम अभया था । नगर सेठ थे वेष्ठि नषभदास जो पूजा पाठ एवं वन्दना में अपार विश्वास रखते थे । सेठानी जिनमती भी धार्मिक प्रवृत्ति वाली थी। एक रात्रि के पिछले पहर में सेठानी ने स्वप्न देखा और मुनि द्वारा स्वप्न फल बतलाये जाने पर दोनों पति पनि अत्यधिक प्रसन्न हुए कि उन्हें शीघ्र ही सुयुत्र रत्न की प्राप्ति होगी । सेठ ने पुत्र अन्म पर खूब दान दिया, उत्सव किये एवं पूजा पाठ का प्रायोजन किया। उन्होंने पुत्र का नाम सुदर्शन रखा । बालक बड़ा हुमा । पढने लगा और जब वह युवा हो गया तो माता-पिता ने एक सुन्दर कन्या से उसका विवाह कर दिया । सुदर्शन के माता-पिता ने उसे गृहस्थी का समस्त भार सौंप कर जिन दीक्षा धारण करली । कुछ समय पश्चात् सेठ सुदर्शन के भी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
एक दिन सेठ सुदर्शन कपिला ब्राम्हणी के घर के नीचे होकर निकले । कपिला सुदर्शन के रूप एवं सौन्दर्य को देख कर उस पर प्रासक्त हो गयी। उसे चाहने लगी । एक दिन कपिला ब्राम्हणी के पति को कहीं बाहर जाना पड़ा । कपिला ने अपने पेट के दर्द का बहाना लिया और दुख से विह पल होकर चिल्लाने लगी तथा मन्दिर के ऊपर जाकर ढक कर सो गयी । सेठ सुदर्शन ऊपर गये और ब्राम्हणी की बीमारी के बारे में जानकारी चाही। जब वह अपने मित्र के साथ ऊपर गया तो ब्राह्मणी ने उसका हाथ पकड़ लिया और काम जबर का नाम लेने लगी । सेठ सूदर्शन ब्राह्मणी का चरित्र देखकर अचम्भित हो गया और प्रानी स्त्री मनोरमा के अतिरिक्त सभी स्त्रियों को माता, बहिन एवं पुत्री के समान मानने की बात कहने लगा । सेठ ने माम्हणी को बहुत समझाया तथा शील के महत्व को सामने रखा । अन्त में वह ब्राह्मणी के चंगुल से मुक्त होकर घर पहुंचा।
२ हो काया एकप्तौ अधिक पंचाणू, हो रास रहस परवमान बनायो ।