Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text
________________
श्रीपाल रास
भी बंधू के रूप में प्राप्त होती हैं । यहां भी विपत्ति उसका साथ नहीं छोड़ती और पवल सेठ के एक षडयन्त्र में उसे हम पुत्र सिद्ध होने पर सूली की सजा मिलती है लेकिन दैव योग से उस विपत्ति से भी वह बच जाता है और फिर उसे राज्य सम्पदा प्राप्त होती है । इसके पश्चात् उसकी सम्पत्ति एवं ऐश्वयं में दिन प्रतिदिन वृद्धि होती रहती है । अन्त में वह स्वदेश लौटता है और चम्पा का राज्य करने में सफल होता है।
श्रीपाल का जीवन विशेषताओं से भरा पड़ा है। वह "बाव जिसो तीसौ लणी" में पूर्ण विश्वास रखता है । सिद्धचक्र पूजा से उसको कुष्ट रोग से मुक्ति मिलती है। कवि ने उसका "गयो कोह जिम माहि कंचुली" उपमा से वर्णन किया है । प्रतिदिन देवदर्शन करना, पूजा करना, आहार दान के लिये द्वार पर खड़े होना, सत्य भाषण करना, त्रस जीवों का घात नहीं करना, ग्रादि उसके जीवन के अंग थे। वह अत्यन्त विनयी था तथा क्षमाशील था। पवल सेठं द्वारा निरन्तर उसके साथ धोखा करने पर भी उसने राजा के बंधन से मुक्त करा दिया । बीरदमन को पराजित करने पर भी उसे राज्य कार्य सम्हालने के लिये निवेदन करना उसके महान् व्यक्तित्व का परिचायक है।
काव्य का नायक श्रीपाल है । मैनासुन्दरी यद्यपि प्रधान नामिका है लेकिन विदेश गमन से लेकर वापिस स्वदेश लौटने तक वह काव्य में उपेक्षित रहती है और नायिका का स्थान ले लेती है रत्नमंजूषा एवं गुणमाला । काव्य में कोई भी प्रतिनायक नही है । यद्यपि कुछ समय के लिये धवल सेठ का व्यक्तित्व प्रतिनायक के रूप में उभरता है लेकिन कुछ समय पश्चात् उसका नामल्लेख भी नहीं प्राता और रास के प्रारम्भिक एवं अन्तिम भाग में प्रोझल रहता है।।
ब्रह्म राममल्ल ने काव्य में सामाजिक तत्वों को भी वर्णन किया है। रास में चार बार विवाह के प्रसंग पाते हैं और यह उनका प्रायः एकसा ही वर्णन करता है विवाह के अवसर पर गीत गाये जाते थे । लगन लिखाते थे। मंडप एवं वेदी की रचना होती थी । आम के पत्तों की माला बांधी जाती थी। लगन के लिये ब्राह्मण को बुलाया जाता था। विवाह अग्नि और ब्राह्मण की साक्षी से होता था। दहेज देने की प्रथा थी । दहेज में स्वर्ण, वस्त्र, हाथी थोड़े, दासी-दास और यहां तक गांव भी दिये जाते थे । शुभ अवसरों पर जीमनवार होती थी। स्वयं श्रीपाल ने दो बार अपनी साथियों को जीमण कराया था।
श्रीपास रास में एक दोहा छन्द को छोड़ कर शेष सब पद्य रास छन्द में लिखे हुये हैं । यह संगीत प्रधान काव्य है जिसमें प्रत्येक छन्द के अन्त में 'रास भणों