Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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श्रीपाल रास
श्रीपाल अपनी
पत्नी के साथ अपने बेड़े पर गया। घवल सेठ और उनके सभी साथियों ने ऐसी सुन्दर वधु प्राप्त करने पर उसे बधाई दी। श्रीपाल ने अपने साथियों को बड़ा भोज दिया ।
हो निश्हर मध्य भयो जैकार, सौरीपाल दोनो ज्योणार ।
तथा जुगति संतोषीया हो कनक वस्त्र होना बहु वान । हाथ जोडि बिनती करी, हो धवल सेट्ठि नं दीनो मान ।।११३।।
एक दिन रत्नमंजूषा ने श्रीपाल से पूरा परिचय जानना चाहा। श्रीपाल ने संक्षिप्त रूप से अपना परिचय दिया और विदेश यात्रा पर श्राने का निम्न कारण बताया
हो हृमस्यों कहे बाल गोपाल, राज जवाह इह सीरोपाल । नाम पिता की फोन लेहो, मेरा मन में उपज्यो सोग । कारण सेवक cafeया हो, नकछ पटरि संजोग ।। ११८ ॥
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रत्नदीपस्तुओं को साथ लेकर वल सेठ ने वहां से अपने देश को प्रस्थान किया । साथ में उसके ५०० जहाजों का बेड़ा था। श्रीपाल एवं रत्नमंजूषा भी साथ थे। घवल सेठ रत्नमंजूषा का रूप लावण्य देख कर आप में नहीं रह सका । वह दिन प्रतिदिन उसके साथ सहवास की इच्छा करने लगा । श्रीपाल एवं रत्नमंजुषा के हास परिहास को देखकर वह बेहाल हो जाता और उसको प्राप्त करने का उपाय सोचता रहता ।
हो ऐसा मंजूषा सेवे कंस, घवस सेट्ठि प्रति पीस दंत ।
नींव सूख तिरषा गइ हो मंत्री जोग्य कही सहु बात सुवरि स्पौ मेली करो हो, के हों मरों करों अपघात ।।१२२||
उसके मन्त्री ने सेठ को बहुत समझाया । कीचक एवं रावण के उदाहरण
दिये । लोक में निन्दा होने की बात कही तथा श्रीपाल को धर्मपुत्र होने की बात बतलायी । लेकिन सेठ के मन पर कोई असर नहीं हुआ । ग्रन्त में सेठ ने एक दांव फेंका और उसे एक लाख का इनाम देने की बात कही
हाथ जोड़ विनती करे हो लाख टका पहली ल्यौ रोक । सुंदर हम मेलो करो, हो जाय हमारा मन को सोक ।। १२७ ।।
लाख टके की बात सुन कर मन्त्री को लोभ या गया और वह श्रीपाल के
बघ की नाल सोचने लगा । उसने जहाज के चालक ( धीमर) से मिल कर एक षडयन्त्र रचा जिसके फलस्वरूप जहाज के धीमर (मल्लाह) चोर-चोर चिल्लाने लगे ।