Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
लीला राम जैन धर्म में श्रीपाल एवं मैनासुन्दरी का जीवन अत्यधिक लोकप्रिय है । सिद्ध चक्र की पूजा के महात्म्य को जन जीवन तक पहुंचाने का पूरा श्रेय मैना सुन्दरी को है जिसने इस सिद्धचक्र नत एवं पूजा के महात्म्य से कुष्ट रोग से पीड़ित अपने पति श्रीपाल एवं उसके ७०० साथियों का कुष्टरोग दूर कर दिया था । इसलिये जैनाचार्यों एवं जैन विद्वानों ने इन दोनों के जीवन को लेकर विविध काव्य लिखे हैं। प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी एवं हिन्दी में चरित, रास, चौपई, वेलि संज्ञक रचनाए निबद्ध की गयी और उनके माध्यम से श्रीपाल एवं मनासुन्दरी का जीवन आकर्षण का केन्द्र बन गया । रचना काल
प्रस्तुत रास कविवर ब्रह्म रायमस्ल की काव्य रचना है जिसमें उन्होंने २६५ पद्यों में श्रीपाल एवं मनासुन्दरी के जीवन का विषद वर्णन किया है। यह रास कवि के काव्य जीवन की परिपक्व अवस्था का काम है जिसे उन्होंने संवत् १६३० अषाढ सुदी १३ शनिवार को राजस्थान के प्रसिद्ध गढ़ रणथम्भौर में समाप्त किया था। अष्टान्हिका पर्व में विमोचित यह रास काव्य श्रीपाल एवं मनासुन्दरी को समपित काव्य है । रणथम्भौर उस समय धन जन सम्पन्न दुर्ग था । बादशाह अकबर का उस पर शासन था । दुर्ग में चारों ओर छोटे-छोटे सरोवर, दाग एवं बगीचे थे। सरोवर जल से अप्लादित थे तथा उद्यान वृक्ष और लताओं से आच्छादित थे । दुर्ग में जैन धर्मावलम्बियों की अच्छी संख्या थी। वे सभी घन सम्पत्ति मे भरपूर थे । सभी धावक चार प्रकार के दान-आहारदान, औषधिदान, शानदान एवं अभयदान के देने वाले थे । यही नहीं वे प्रतिदिन व्रत, उपवास, प्रोषध एवं सामायिक करते थे । ब्रह्म रायमल्ल को भी ऐसे ही दुर्ग में श्रावकों के मध्य कुछ समय के लिये रहना पड़ा और उन्होंने नानकों के आग्रह से वहीं पर श्रीपाल रास की रचना की ।
१. हो सोलर तीसो सुभवर्ष, हो मास आषाढ भण्यो करि हर्ष ।
तिथि तेरसि सित सोभनी, हो अनुराधा नक्षत्र सुभ सार । कर्ण जोग दीसं भला, हो सोभन कार शनिश्चरवार ।।२६।।
रास भणौं सरिपाल को । हो रणथभ्रमर सौमै कवि लास, भरीया नीर ताल बहु पास । बाग विहर वाडी घणी, हो धन कण सम्पत्ति तरणों निधान साहि अकबर राज हो । सौमै घणा जिलोसुर थान ।।२६६।।