Book Title: Mahakavi Bramha Raymal Evam Bhattarak Tribhuvan Kirti Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text
________________
प्रद्युम्न रास द्वारिका के वर्णन से रास प्रारम्भ होता है। वहां प्रप्रकवष्टि राजा थे जो सम्पदृष्टि श्रावक थे | कुन्ती इसी की पुत्री थी जिसका पांडुराज से विवाह हुआ था । इमका पुत्र बसुदेव था तथा उसकी पत्नी का नाम रोहिणी था जो रूप सौन्दर्य में प्रप्सरा के समान थी (रूपकला अपसरा समान) । इनके दो पुत्र नारायण एवं बलिभद्र थे। दोनों ही शलाका पुरुषों में थे तथा जैन धर्म के प्रति उनका विशेष अनुराग था । एक दिन नारायण के घर पर नारद ऋषि का प्रागमन हुमा । ऋषि का स्वागत सत्कार करने के पश्चात् नारायस बारद हाई बीपकागर कहने के लिये निवेदन किया क्योंकि नारद का सभी क्षेत्रों एवं स्थानों पर आवागमन रहता था। नारद ने कहा कि पूर्व और पश्चिम दोनों में केवल ज्ञानी विचरते हैं और उसके ममवसरण में प्राणी मात्र धर्मलाभ लेते हैं। इसके पश्चात् नारद महलों में गये जहां श्रीकृष्ण की रानी सत्यभामा रहती थी । सत्यभामा ने नारद का स्वागत नहीं किया और अपने ही श्रृंगार में व्यस्त रही। इस पर नारद ने सत्यभामा को गर्व नहीं करने की बात कही किन्तु इस पर वह उल्टे नारद को मान कषाय त्यागने का उपदेश देने लगी । इस पर नारद क्रोधित हो गये और निम्न शब्दों में उसकी भत्सना को
हो भणे रषीसुर वेवी अभागी, हो हम ने जी सीख देग तू लागी । पाप धर्म जाणो नहीं जी, हो मुझ न जी मानवान सहु आप 1 सुर भर सह सेवा कर जी, हो तोमि लोक मुझ पे सह कंपै ।
सत्यभामा ने उसका फिर कटाक्ष रूप में उत्तर दिया जिरासे नारद ऋषि और भी जल गये । उन्होंने निश्चय किया कि सत्यभामा अपने रूप लावण्य के मद में चूर है इसलिये श्रीकृष्ण जी के इससे भी सुन्दर वधु लानी चाहिये। इसी विचार से वे चारों ओर घूमने लगे। ये विद्याधरो की नगरी में गये और देश की विभिन्न राजधानियों में गये । अन्त में चल कर वे कुण्डलपुर पहुंचे जहां भीषमराज राज करते थे । श्रीमती उनकी पटरानी थी। रूप कुमार पुत्र था तथा शक्मिणी पुत्री थी । एक मुनि ने नारद ऋषि के आने के पूर्व ही रुक्मिणी का विवाह कृष्णाजी के साथ होगा ऐसी भविष्यवाणी कर दी थी । जब रुक्मिरणी की मुवा सुमति ने मुनि की भविष्यवाणी के बारे में बतलाया तो भीषम राजा ने श्रीकृष्ण जी के साथ विवाह करने का विरोध किया तथा शिशुपाल के साथ रुक्मिणी का विवाह करना निश्चय किया।
नारद ऋषि भीषम राजा के महल में गये । वहां रानियों ने नमस्कार करके उन्हें उचित आदर सत्कार दिया । रुक्मिणी ने आकर जब नारद की वन्दना को तो उसे श्रीकृष्ण जी की पटरानी बनने का आशीर्वाद दिया। नारद वहीं से कृष्ण जी की सभा में गये और वहां उन्होंने निम्न बात कही