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क्रियाकोष
फलिय कुवारि कली कचनार, फूल सहजणा आदि अपार । महानिंद जीवनका धाम, तजिये तुरत विवेकी राम ॥ १७१ ॥
दोहा त्रेपन किरियाके विषै, प्रथम मूलगुण आठ । तिन वर्णन संक्षेपतें, कह्यो पूर्व ही पाठ ॥ १७२ ॥ जिनवाणी जैसी कही, कथा संस्कृत तेह | भाषा तिह अनुसारतैं, बंध चौपई एह ॥१७३॥ पंच उदुम्बर फल त्यजन, मकारादि पुनि तीन । महा दोषकर जानिके, तुरत तजहु परवीन ॥ १७४॥
सवैया
पीपर औ बड़ फल उंबर कटुंबर हु, पाकर ए पांच उदंबर फल जाणिये; मद्य मांस मधु तीन मकारादि अति हीन,
सुन परवीन सबै आठ ए बखानिये । इनही के दोष जेतै तामें पापदोष ते ते,
लहै न संतोष ते ते नर खात मानिये; इनके तजे जो मन वच क्रम भव्य जीव, आठ मूलगुणके सधैया मन आनिये ॥१७५॥
आदिक फल अनन्तकाय कहे गये हैं इसलिये उत्तम जनोंको इनका शीघ्र ही त्याग करना चाहिये ॥ १७० ॥ गुवार फली, कचनारकी कली तथा सोहजना आदिका फूल महानिन्दनीय तथा जीवोंका स्थान है इसलिये विवेकी जनोंको इनका शीघ्र ही त्याग करना चाहिये ॥ १७१॥
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ग्रन्थकार कहते हैं कि हमने त्रेपन क्रियाओंमें सर्व प्रथम जो आठ मूल गुण हैं उनका पहले ही अधिकारमें संक्षेपसे वर्णन किया है ॥ १७२ ॥ जिनवाणीमें जैसा कहा है तथा संस्कृत ग्रंथोंमें जैसा कथन किया गया है उसके अनुसार चौपाई बाँधकर भाषामें वर्णन किया है || १७३॥ तात्पर्य यह है कि पाँच उदुम्बर फल और तीन मकारको महादोषयुक्त जान चतुर मनुष्य शीघ्र ही छोड़ें ॥१७४॥
पीपल, बड़, ऊमर, कठूमर और पाकर ये पाँच उदुम्बर फल हैं तथा मद्य, मांस और मधु ये तीन मकार हैं। दोनों मिलकर आठ होते हैं। इनमें जितने दोष हैं उनसे उतने ही पाप लगते हैं। जो मनुष्य संतोषी नहीं हैं वे ही इन्हें खाते हैं। जो भव्यजीव मन वचन कायसे इनका त्याग करते हैं वे ही आठ मूलगुणोंके साधनेवाले हैं, ऐसा हृदयमें श्रद्धान कीजिये ॥ १७५ ॥
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