Book Title: Kriyakosha
Author(s): Kishansinh Kavi
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 303
________________ २७६ श्री कवि किशनसिंह विरचित इनिकी पंद्रह पांचे करे, षड आवसिकी छठि छह धरे । भूमि सयन मज्जनको त्याग, वसन-त्यजन कचलोंच विराग || १७२६॥ भोजन करे एक ही बार, ठाडो होइ सो लेइ अहार । करे नहीं दातणकी बात, इनि सातोंकी पडिवा सात ॥ १७२७ ॥ सब मिलि प्रोषध ए 'अठबीस, करिहै भवि तरि है शिव ईस । पंच परमगुरु गुण सब जोड, सौ पर तियालीस धरि कोड ॥ १७२८॥ करिये प्रोषध तिनके भव्य, सुरपदके सुखदायक सव्व । अनुक्रम शिव पावै तहकीक, जिनवर भाष्यो है इह ठीक ॥। १७२९॥ पुष्पांजलि व्रत अडिल्ल भादौं तै वसु मास चैत परयंत ही, तिनके सित पखमें व्रत पुष्पांजलि कही; पंचम तें उपवास पांच नवमी लगै, किये पुण्य उपजाय पाप सिगरे भगै ॥ १७३०॥ अथवा पांचे नवमी वास दुय ही करै, छठि सातै दिन आठै तिहु कांजी करै; छठि ए आठै एकंत वास तिहु कीजिये, दोय वास एकंत तीनहूं लीजिये ॥ १७३१॥ षष्ठी, भूमि शयन, स्नानत्याग, वस्त्रत्याग, केशलोंच, एक बार भोजन, खड़े होकर पाणिपात्रसे आहार और अदन्तधोवन, इन सात शेष गुणोंकी सात प्रतिपदा, इस प्रकार सब मिलाकर अट्ठाईस प्रोषध होते हैं । जो भव्यजीव इन्हें करते हैं वे संसारसागरको पारकर मोक्षके स्वामी होते हैं । पाँचों परमेष्ठियोंके सब गुण एक सौ तेंतालीस होते हैं । जो भव्य इन एक सौ तेंतालीस गुणोंको लक्ष्य कर एक सौ तेंतालीस प्रोषध करते हैं वे स्वर्गके समस्त सुख प्राप्त कर क्रमसे मोक्षको प्राप्त होते हैं ऐसा जिनेन्द्र भगवानने यथार्थ ही कहा है ।।१७२५ - १७२९।। पुष्पांजलि व्रत भादोंसे लेकर चैत्र मास तक आठ माह होते हैं । इनके शुक्ल पक्षमें पुष्पांजलि व्रत कहा गया है । उसकी विधि इस प्रकार है । पंचमीसे लेकर नवमी तक पाँच उपवास करे, इससे जो पुण्य होता है वह समस्त पापोंको दूर भगा देता है || १७३० ।। अथवा पंचमी और नवमीके दो उपवास करे और षष्ठी, सप्तमी और अष्टमी इन तीनके कांजी व्रत करे । अथवा षष्ठी और १ वसुबीस स० न० २ सब स० न० ३ लही स० न० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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